- जोशीमठ में अब तक 600 घरों में आई दरार , प्रशासन ने किया चिन्हित
- भुधँसाव के चलते सुरक्षा के दृष्टिकोण 2 होटलों को प्रशासन नव किया सीज
- लगातार बढ़ रही है दरारें दर्जनो परिवारों ने छोड़ा घर।
- 7 फरवरी रेणी आपदा, एनटीपीसी के पावर प्रोजेक्ट की टनल, ड्रेनेज सिस्टम न हो पाना, मानकों को ताक में रखकर बहु मंजिला इमारतों का निर्माण, मारवाड़ी बायपास बताया जा रहा मुख्य कारण
- 1976 में मिश्रा कमेटी ने की भी पहली बार भूगर्भीय सर्वे। रिपोर्ट को किया गया दरकिनार।
चमोली/ जोशीमठ- धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगरी जोशीमठ भू धंसाव के कारण अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। इसके चलते कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू नहीं हुई तो इस पौराणिक नगरी का अस्तित्व सिमट कर रह जाएगा।
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दरअसल बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब के मुख्य पडाव जोशीमठ का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। अपनी विशिष्टता के चलते जोशीमठ पर भू धंसाव की मार पड़ने से यह ऐतिहासिक नगरी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। जोशीमठ के सिंहधार, सुनील मनोहरबाग, गांधीनगर, नृसिंह मंदिर, जीरोबैंड, रविग्राम तथा टीसीपी बाजार इलाके में ज्यादातर मकानों में भू धंसाव के कारण दरारें पड़ने से कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। मकानों के साथ ही घरों के आंगन भी अंदर ही अंदर धंसने शुरू हो गए हैं। जोशीमठ की सड़कें पहले ही धंसाव की जद में आने के कारण देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग हिचकोले खाकर आवाजाही करने को विवश हैं।
जोशीमठ के अस्तित्व पर 70 की दशक में प्राकृतिक आपदा की मार पडने लगी थी।
धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगरी जोशीमठ भू धंसाव के कारण अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। इसके चलते कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू नहीं हुई तो इस पौराणिक नगरी का अस्तित्व सिमट कर रह जाएगा।
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दरअसल बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब के मुख्य पडाव जोशीमठ का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। अपनी विशिष्टता के चलते जोशीमठ पर भू धंसाव की मार पड़ने से यह ऐतिहासिक नगरी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। जोशीमठ के सिंहधार, सुनील मनोहरबाग, गांधीनगर, नृसिंह मंदिर, जीरोबैंड, रविग्राम तथा टीसीपी बाजार इलाके में ज्यादातर मकानों में भू धंसाव के कारण दरारें पड़ने से कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। मकानों के साथ ही घरों के आंगन भी अंदर ही अंदर धंसने शुरू हो गए हैं। जोशीमठ की सड़कें पहले ही धंसाव की जद में आने के कारण देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग हिचकोले खाकर आवाजाही करने को विवश हैं।
जोशीमठ के अस्तित्व पर 70 की दशक में प्राकृतिक आपदा की मार पड़ने लगी थी।सकट में घिरा
वैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार अलकनंदा से जोशीमठ नगर की तलहटी पर कटाव की वजह से जोशीमठ का अस्तित्व में खतरे में पड़ता जा रहा है। नालियों का निर्माण न होने के कारण भी भू धंसाव विकराल रूप धारण करता जा रहा है।
समस्या को।देखते हुए प्रशासन के आग्रह पर आईआईटी रूड़की तथा वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस धार्मिक नगरी का बारीकी से जायजा लिया। वैज्ञानिकों की टीम ने पूरे इलाके का अध्ययन कर लिया है। इस बारे में सिफारिश की गई है कि जल्द से जल्द इस धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी को बचाने के लिए प्रभावी कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए।
चमोली जनपद पूरी तरह भूकंपीय दृष्टि से जोन 5 में स्थित ऐतिहासिक नगरी पर भूकंप की मार का खतरा हर समय मंडरा रहा है। करीब 17 हजार से अधिक आवादी वाले सीमांत नगर जोशीमठ में 4000 करीब मकानों की बसागत भी है। इसके चलते इंसानी तथा मकानों का बोझ भी इस संवेदनशील नगरी पर बढ़ता जा रहा है।
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जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि गुजरे दशकों में जोशीमठ के धंसने की प्रक्रिया में कुछ ठहराव भी आता रहा किंतु पिछले साल फरवरी और अक्टूवर की तबाही ने धंसाव की प्रक्रिया को गति दी है। उनके अनुसार 70 के दशक में भूस्खलन और भ धंसाव के चलते जोशीमठ पर खतरे के भू बादल मंडराने लगे थे। इसके चलते 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की
अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया। मिश्रा कमेटी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्राकृतिक जंगलों को बेरहमी से तहसनहस कर दिया गया। पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ के होने के चलते ही खतरे ने आमद दी है। करीब 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर जोशीमठ स्थित है। इसके बावजूद पेड़ अब 8 हजार फीट से पीछे हो रहे हैं। पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्खलन हो रहा है। भवनों के निर्माण तथा सड़कों के बनने से ब्लास्ट से भी इस नगरी के अस्तित्व पर खतरे की घंटी पहले ही बज चुकी है। अतुल सती के अनुसार रिपोर्ट पर अमल नहीं हुआ। इसके बजाय विस्फोटों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर बड़े निर्माण कार्य होते रहे। यही वजह है कि जोशीमठ के विस्तार से के साथ ही भू धंसाव की गति ने जोर पकड़ा है। भू वैज्ञानिकों और विशेषज्ञो की रिपोर्ट में नियंत्रित विकास की बात की गई है। उनके अनुसार 1962 के चीन युद्ध के बाद जोशीमठ इलाके में सड़कों का तेजी से जाल बिछा। सेटेलाइट तस्वीरों की मदद से डेंजर स्पॉट चयनित किए गए हैं।
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बताया जा रहा है कि जोशीमठ का ही रविग्राम हर साल 85 एमएल की रफ्तार से धंस रहा है। जोशीमठ के पालिकाध्यक्ष शैलेंद्र पंवार का कहना है कि जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू की जानी चाहिए। जोशीमठ पर बढ़ते मानवीय दबाव के चलते यदि अभी भी सवेदनशीलता नही दिखाई तो मामला गम्भीर हो सकता है।
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बद्रीनाथ विधायक राजेन्द्र भण्डरी ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए उन्होंने कहा कि मामला बहुत गम्भीर है जिसके लिए सरकार को लोगो के घरों को बचाने और लगातार हो रे भु धंसाव के लिए आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जनपद चमोली के जोशीमठ में हो रहे भूधसाव के सन्दर्भ में आज 6 जनवरी को उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक करेंगे। बैठक सायं 6:00 बजे सचिवालय स्थित अब्दुल कलाम भवन के चतुर्थ तल पर आहूत की गई है।
बैठक में मुख्य सचिव, सचिव आपदा प्रबंधन, सचिव सिंचाई, पुलिस महानिदेशक, आयुक्त गढवाल मण्डल, पुलिस महानिरीक्षक एसडीआरएफ, जिलाधिकारी चमोली सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहेंगे। जो अधिकारीगण मुख्यालय में उपस्थित हैं भौतिक रूप में एवं अन्य अधिकारीगण जो मुख्यालय से बाहर हैं, ये वीडियो कान्फ्रेंन्सिंग के माध्यम से प्रतिभाग करेंगे।
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उधर आज सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर गढवाल कमिश्नर सुशील कुमार, आपदा प्रबंधन सचिव रन्जीत कुमार सिन्हा, आपदा प्रबंधन के अधिशासी अधिकारी पीयूष रौतेला, एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडेंट रोहितास मिश्रा, भूस्खलन न्यूनीकरण केन्द्र के वैज्ञानिक सांतुन सरकार, आईआईटी रूडकी के प्रोफेसर डा.बीके माहेश्वरी सहित तकनीकी विशेषज्ञों की पूरी टीम जोशीमठ पहुंच गई है। गढवाल कमिश्नर एवं आपदा प्रबंधन सचिव ने तहसील जोशीमठ में अधिकारियों की बैठक लेते हुए स्थिति की समीक्षा की गई। विशेषज्ञों की टीम द्वारा प्रभावित क्षेत्रों का विस्तृत सर्वेक्षण किया जा रहा है।
जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या के दृष्टिगत जिला प्रशासन ने बीआरओ के अन्तर्गत निर्मित हेलंग वाई पास निर्माण कार्य, एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के अन्तर्गत निर्माण कार्य एवं नगरपालिका क्षेत्रान्तर्गत निर्माण कार्यो पर अग्रिम आदेशों तक तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। साथ जोशीमठ-औली रोपवे का संचालन भी अग्रिम आदेशों तक रोका गया है।
प्रभावित परिवारों को शिफ्ट करने हेतु जिला प्रशासन ने एनटीपीसी व एचसीसी कंपनियों को एहतियातन अग्रिम रुप से 2-2 हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन तैयार कराने के भी आदेश जारी किए है।
जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या को लेकर प्रशासन प्रभावित परिवारों को हर संभव मदद पहुंचाने में जुटा है। प्रभावित परिवारों को नगरपालिका, ब्लाक, बीकेटीसी गेस्ट हाउस, जीआईसी, गुरुद्वारा, इंटर कालेज, आईटीआई तपोवन सहित अन्य सुरक्षित स्थानों पर रहने की व्यवस्था की गई है। जोशीमठ नगर क्षेत्र से 43 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर अस्थायी रूप से शिफ्ट कर लिया गया है। जिसमें से 38 परिवार को प्रशासन ने जबकि पांच परिवार स्वयं सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट हो गए है।
भू-धसाव बढने से खतरे की जद में आए भवनों को चिन्हित किया जा रहा है। ताकि कोई जानमाल का नुकसान न हो। राहत शिविरों में बिजली, पानी, भोजन, शौचालय एवं अन्य मूलभूत व्यवस्थाओं के लिए नोडल अधिकारी नामित करते हुए जिम्मेदारी दी गई है।
जिलाधिकारी हिमांशु खुराना द्वारा लगातार स्थिति की समीक्षा की जा रही है। अपर जिलाधिकारी डा.अभिषेक त्रिपाठी एवं संयुक्त मजिस्ट्रेट डा.दीपक सैनी सहित प्रशासन की टीम मौके पर मौजूद है। जोशीमठ भू-धंसाव के खतरे से निपटने के लिए एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस सुरक्षा बल को अलर्ट मोड पर रखा गया है।
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