कैसा आया ये संकट, कैसी हैं ये दशा
किसको कहूं मैं अपने मन की व्यथा
हर इंसान में एक ड़र हैं
सो न जाऊं कहीं मौत के आगोश में
हर इंसान में एक ड़र हैं
खो न दूं अपने किसी करीबी को
हर इंसान में एक ड़र हैं
छू न लू कहीं किसी मरीज को
कभी तो इस डर का अंत होगा
खौफनाक रात की सुहानी सुबह होगी
गुजारों कुछ दिन सुकून के
अपने परिवार और साथी संग
जल्दी खत्म ये डरावनी रात होगी
फिर से नवजीवन की शुरुआत होगी
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