- पंतनगर की उन्नत गेहूं, धान और जौ की किस्मों पर रहा जोर: विकसित कृषि संकल्प अभियान 2025
उधम सिंह नगर, उत्तराखंड: विकसित कृषि संकल्प अभियान 2025 के अंतर्गत गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर की विशेषज्ञ टीम ने सितारगंज ब्लॉक के तीन गांव—लौका, बखपुर और सहदौरा—में विशेष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य किसानों को वैज्ञानिक कृषि तकनीकों, उच्च उत्पादकता वाली किस्मों और सरकारी योजनाओं से जोड़ते हुए उन्हें आधुनिक, टिकाऊ और लाभकारी कृषि पद्धतियों की ओर प्रेरित करना था।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के डॉ. बी. डी. सिंह, प्राध्यापक, सस्य विज्ञान, डॉ. अजय प्रभाकर प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र, काशीपुर, डॉ. अर्पिता शर्मा कांडपाल सहायक प्राध्यापक, कृषि संचार, डॉ. स्वाति, प्राध्यापक, पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी और डॉ. मीना अग्निहोत्री प्राध्यापक, कीट विज्ञान सहित कृषि विभाग के अधिकारी उपस्थित रहे।
डॉ. बी. डी. सिंह ने किसानों को पंतनगर द्वारा विकसित गेहूं, धान और जौ की नवीनतम किस्मों की विशेषताएँ समझाते हुए कहा कि इन किस्मों को विशेष रूप से उत्तराखंड की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। उन्होंने खेत की तैयारी से लेकर कटाई तक की वैज्ञानिक विधियों पर चर्चा की और कहा कि तकनीक आधारित खेती ही आने वाले समय की आवश्यकता है।
डॉ. अजय प्रभाकर ने किसानों को स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र की भूमिका से अवगत कराया और बताया कि किसान अपने क्षेत्र में ही प्रशिक्षण, सलाह और परीक्षण सुविधा का लाभ कैसे उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि “खेती में सुधार केवल जानकारी से नहीं, बल्कि निरंतर संवाद और परीक्षण से आता है, और कृषि विज्ञान केंद्र किसानों के साथ यही सेतु का कार्य करता है।”
डॉ. अर्पिता शर्मा कांडपाल ने महिलाओं के सक्रिय सहभागिता पर बल देते हुए कहा कि “जब महिलाएं कृषि नवाचारों को अपनाती हैं, तब पूरे समुदाय की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आता है।” उन्होंने महिलाओं को सोशल मीडिया और मोबाइल एप्स के जरिए अपने उत्पादों की ब्रांडिंग, ग्राहक संवाद और बाजार तक पहुंच बनाने के व्यावहारिक तरीके समझाए।
डॉ. स्वाति ने पादप प्रजनन और उन्नत बीज प्रौद्योगिकी पर आधारित चर्चा में बताया कि “बीज ही कृषि की नींव है। यदि बीज अच्छी गुणवत्ता का हो, तो उत्पादन और लाभ स्वतः दोगुना हो जाता है।” उन्होंने हाइब्रिड बीजों के चयन, बीजोपचार और बीज उत्पादन के घरेलू तरीकों को भी साझा किया।
डॉ. मीना अग्निहोत्री ने किसानों को कीट प्रबंधन की सरल और व्यावहारिक तकनीकों की जानकारी दी। उन्होंने जैविक कीटनियंत्रण विधियों जैसे नीम तेल, ट्राइकोग्रामा, फेरोमोन ट्रैप आदि के उपयोग पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि “अधिक रसायन नहीं, समझदारी से कीट नियंत्रण ही पर्यावरण और फसल दोनों के लिए हितकारी है।”
किसानों ने कार्यक्रम को अत्यंत उपयोगी बताते हुए अनुरोध किया कि इस प्रकार के कार्यक्रम अधिक गांवों में भी आयोजित किए जाएं। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केवल जानकारी देने वाला नहीं, बल्कि सोच में बदलाव लाने वाला अनुभव था।
यह जागरूकता अभियान ग्रामीण समुदाय के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण, नवाचार और सहयोग की भावना को सुदृढ़ करते हुए आत्मनिर्भर और समावेशी कृषि विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ।
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