विजयादशमी

हर मन में छुपे दशानन का कब होगा अंत ?

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वैश्विक महामारी कोरोना ने इस बार पूरे विश्व सहित हमारे देश भारत को भी काफी परेशान किया है और इस जंग से लड़ने के लिए सभी ने संयमता दिखाई तो कुछ लोगों ने नियमों की खूब धज्जियां उड़ाई।अब लाकडाउन के बाद धीरे धीरे अनलाक से सभी गतिविधियां लगभग सामान्य होने लगी हैं। इस बार महामारी कोरोना के कारण बड़े स्तर के धार्मिक आयोजन गतिविधियां आयोजित अभी नहीं हो पा रही हैं। स्वच्छ समाज के निर्माण के सभी के स्वच्छ मन से योगदान की आवश्यकता होती है। हम सभी को आवश्यकता होती है अपने मन के अंदर स्वच्छ छवि स्वच्छ मन को तरासने की।

अंतर्मन की चेतना को जागृत करने की आवश्यकता है सुंदर समाज को बनाने के लिए। जिससे हर मन में छुपे दशानन का अंत हो सके। दशहरे पर हम सभी भले ही सच्चाई की जीत का जश्न मनाने को तैयार हो, किन्तु वास्तव में केवल यह हमने  एक मात्र परंपरा के रूप तक ही सिमित रख दी है । सोचा जाय तो हमने कभी भी भगवान श्री रामचन्द्र जी के आदर्शो पर चलने की कोशिश या कभी कल्पना मात्र भी नहीं की । उन महान आदर्शो , चरित्रों को अपने अपने जीवन में उतारने का प्रयास शायद ही कभी किया हो, फिर करें भी कैसे? इस व्यस्तता भरी जिंदगी में , हम तो केवल औपचारिकताओं में ही सिमट कर रह जाते हैं ।

और केवल अपने स्वार्थ को साधना और औपचारिकता में सब कुछ निबटा देना यह लगभग सभी की आदत सी बन चुकी है। और जब हम सभी औपचारिकताऐं ही करें तो आज जग में सुख की आश लगाना भी निरर्थक है फिर कोई कैसे सुरक्षित होने का दंभ भर सकता है, और कैसे कोई भ्रष्टाचार मुक्त होने का सपना देख सकता है यह अलग बात है कि सपना जो देखा वह साकार होना भी असंभव है । क्योंकि आज हम भले ही दशानन (रावण), कुम्भकर्ण, मेघनाध, का पुतला बहुत हर्षोल्लास से जलाते हैं,और सदैव जलाते आये हैं और असत्य पर सत्य की विजय, अधर्म का नाश , और रावण के अत्याचारों से मुक्ति के लिए खुशियां मनाते हैं लेकिन हम भले ही पटाखों की गड़गड़ाहट में खूब खुश हो रहे हों किन्तु वास्तव में वह जलता हुआ पुतला मानो हम पर अट्टाहास कर रहा हो ,वह जलता हुआ पुतला हम पर अट्टाहास कर रहा है और कह रहा है कि क्या मात्र पुतला जलने से तुम संसार में सुख की आश कैसे लगा सकते हो, सत्य भी है आज भ्रष्टाचार रूपी दशानन ने जो पांव पसारे हैं उनसे मुक्ति की आश लगाना असंभव लग रहा।

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आज भ्रष्टाचार से विकास को जो दीमक लग चुका है उससे कैसे मुक्ति मिलेगी यह विचारणीय एंव चिंतनीय है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत क्या बन पायेगा, इसका उत्तर शायद ही किसी के पास हो , हर छोटे बड़े काम में रिश्वतखोरी, विकास के कामों में कमीशनबाजी, रूपी दशानन आज भी व्याप्त होने का अपना प्रमाण दे रहा है। यही नहीं समाज में दशानन के दसों रूप आज भी अपने उसी स्वरूप में विद्यमान हैं चारों ओर नहीं हैं तो केवल राम । राग, द्वेष, लोभ, क्रोध, तृष्णा, ईष्या, व्यभाचार, मोह,  लूट, भ्रष्टाचार, ये सभी हमारे समाज में आज भी पूर्ण रूप से पांव पसारे हैं और दशानन अपने विद्यमान होने का हमे संकेत दे रहा है,  समाज में बालिकाओं, महिलाओं पर हो रहे अपराध , दुष्कर्म की घटनाऐं बार बार समाज में जग में दशानन के अत्याचर व विद्यमान होने का संकेत नहीं तो और क्या है।

उनके सिद्धांतों का सभी लोहा मानते थे, चूँकि उनमें अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने तक की मारक क्षमता विद्यमान थी..

दुष्कर्मी , आरोपी भ्रष्टाचार रूपी दशानन के प्रभाव से आसानी से बच निकल जाते हैं या आसानी से बरी हो जाते हैं, इसके अनेक उदाहरण हमारे आसपास विद्यमान हैं। समाज में फैल रहे निरंतर व्यभाचार, राग द्वेष , लूटपाट आदि भी दशानन के ही अवतार हैं फिर समाज में जब ये सब फैले हों तो हम फिर सुख की आश कैसे लगा सकते हैं। भ्रष्टाचार रूपी दशानन के अत्याचार से ही समाज में बेरोजगारी, मंहगाई लगातार पांव पसार रही है जिसका दंश आम जनमानस को झेलना पड़ता है, आज भले ही विकास के नाम अरबों रूपये बहाये जाते हों किन्तु विकास कागजों में सिमट कर रह जाते हैं कारण भ्रष्टाचार रूपी रावण का बढ़ता अत्याचार ।

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विकास में भ्रष्टाचार बाधक बनते जा रहा है, बड़े राजनैतिक दलों द्वारा भले ही साफ सुथरे होने का दंभ भरा जाता हो किंतु भ्रष्टाचार ने वहां पूर्ण रूप से पांव पसार लिये हैं ,भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई ठोस निर्णय तो लेने ही होंगें जिससे बढ़ते भ्रष्टाचार रूपी रावण का अत्याचार कम हो सके व इसका अंत हो सके। भ्रष्टाचार के कारण ही आज अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ते जा रही है। योजनाओं का लाभ जिसे मिलना चाहिए था उसे नहीं मिलता यही कारण है कि लोग में बी.पी.एल बनने की होड़ लगी हुई है क्यों, क्योंकि इससे आसानी से अनेक योजनाओं का लाभ उठाया जा सके, और जिससे वास्तविक लाभ मिलना चाहिए था वह भ्रष्टाचार रूपी दशानन का अत्याचार झेल रहा होता है।

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आज आवश्यकता है कि पवित्रता कि धार सबके मन में बहे, मानवता का उदय हो, सच्चे आदर्शो , चरित्रों को हम अपने जीवन में उतारें। सभी के मन से राग, द्वेष, लोभ, क्रोध, तृष्णा, ईष्या, व्यभाचार, मोह, लूट, भ्रष्टाचार रूपी दशानन का अंत कैसे होगा यह प्रश्न सदैव ही प्रश्न बनकर रह जाता है क्या वास्तव में समाज से सभी के मन से राग, द्वेष, लोभ, क्रोध, तृष्णा, ईष्या, व्यभाचार, मोह,  लूट, भ्रष्टाचार रूपी दशानन के अवतारों का अंत होगा या फिर जलता हुआ पुतला अट्टहास करता हुआ हमारा सदैव उपहास करता रहेगा,यह सदैव ही विचारणीय एंव चिंतनीय प्रश्न है।

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