सनातन संस्कृति की वैज्ञानिकता: शारदीय नवरात्र

खबर शेयर करें -

हमारे सत्य सनातन संस्कृति की सदैव से विज्ञान आधारित परंपरा रही है, जिसे मुगल आक्रमणों, उपनिवेश काल और आजादी के बाद भी तथाकथित लिब्रल्स द्वारा खंडित और दुष्प्रचारित करने का प्रयास किया जाता रहा है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में पड़ने वाली संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है।

यह भी पढ़ें 👉  सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा में देवांश का देशभर में तीसरा स्थान, शिरोमणि इंस्टीट्यूट की मेहनत लाई रंग

आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार लंघन यानी उपवास हमारे शरीर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को निकालने का माध्यम है। फलों का सेवन, साबूदाना, कुट्टू, सिघाड़ा का आटा, तिन्नी चावल जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नौ दिन करने से शरीर में स्फूर्ति के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें रात्रि का विशेष वैज्ञानिक महत्व है, जिसे हमारे मनीषियों ने समझने और समझाने की कोशिश की है। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। ध्यान, पूजन, मंत्रों के उच्चारण और संयमित आचरण से शरीर में सकारात्मक उर्जा में वृद्धि होती है, नकारात्मक उर्जा खत्म होती है, काम क्रोध, लोभ जैसे दुर्गुणों पर विजय प्राप्त होती है, आत्मनियंत्रण और आत्मबल मजबूत होता है।

अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें

Subscribe
Notify of

1 Comment
Inline Feedbacks
View all comments