24 अप्रैल 1884 यह दिन कुमाऊ के इतिहास में लिखा जाने वाला था क्योंकि इसी दिन पहली बार काठगोदाम गुलाम भारत मे ब्रिटिश हुकूमत में ट्रेन पहुंची थी, 24 अप्रैल को जब यहां पहली ट्रेन लखनऊ से आई तो यहां के लोगों को लगा कि शायद यह अंग्रेजों की कोई साजिश है। अंग्रेजों ने तब यहां रेल की पटरी ब्यापार को बढ़ावा देने के लिए बिछाई थी क्योंकि दिल्ली कोलकाता तथा अन्य महानगरों को ट्रेन से जोड़ा जा चुका था और उत्तर पूर्व के लिए ट्रेन की पटरियां बिछाने का काम किया जा रहा था 1870 के दशक में ब्रिटिश हुकूमत ने पटरियों की नींव रख दी थी,
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कुमाऊ के प्रवेश द्वार के रूप में मशहूर काठगोदाम उस समय चौहान पाटा के नाम से जाना जाता था तत्कालीन टिंबर किंग के नाम से मशहूर दान सिंह बिष्ट उर्फ दान सिंह मालदार ने यहां कई लकड़ी के गोदाम बनाए और बड़ा कारोबार किया। ब्रिटिश शासकों द्वारा कुमाऊ में कब्जा करने के बाद काठगोदाम दृष्टिकोण से और भी महत्वपूर्ण बन गया पहाड़ से इमारती लकड़ी लाने के लिए परिवहन का कोई साधन नहीं होता था लिहाजा लकड़ियों को नदियों के सहारे तक काठगोदाम पहुंचाया जाता था और यहां से पूरे भारत में इन लकड़ियों को बाजार मिलता था।
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पुराने इतिहास में चंद शासनकाल में काठगोदाम को बढ़ाखोड़ी या बड़ाखेड़ी के नाम से जानते थे 1743- 44 के इस दौर में गुलाब घाटी से ऊपर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं हुआ करता था यही वजह थी कि बाहरी दुश्मनो के आक्रमण को रोकने के लिए यह जगह बेहतरीन ढाल का काम करती थी रूहेलो और लुटेरों को पहाड़ों की ओर बढ़ने से रोकने के लिए यह जगह बेहद अहम थी 1743 -44 में इसी तरह रुहेलों का एक बड़ा आक्रमण यहां पर विफल किया गया।
धीरे धीरे यह क्षेत्र तरक्की करता चला गया 1901-2 के आसपास यहां की आबादी 300 से 350 थी इसका स्वरूप एक गांव के स्वरूप में था। दशकों बीत गए और यहां का विकास होता रहा आज यह किसी महानगर से कम नहीं है और कुमाऊ का सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन काठगोदाम (kathgodam railway station) बन चुका है यहां से 10 ट्रेनों का संचालन होता है जिनमें 7 रोजाना और तीन साप्ताहिक ट्रेनें हैं और हर साल यहां से 7 से आठ लाख लोग यात्रा करते हैं भारतीय रेलवे के पूर्वोत्तर मंडल का हिस्सा काठगोदाम रेलवे स्टेशन भारत के खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में से एक है।
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