उत्तराखंड: IPS अमित श्रीवास्तव की पुस्तक ‘तीन’ की लेखक व IAS रयाल ने की समीक्षा

KhabarPahad-App
खबर शेयर करें -
  • बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि-

अमित श्रीवास्तव के हाल ही में आए उपन्यास ‘तीन’ को पढ़ते हुए आप अतीत का स्मरण ही नहीं करते वरन् भविष्य में भी झांक सकते हैं। समय तो हमेशा आगे बढ़ता ही रहता है लेकिन मानवता की चुनौतियां थोड़े-बहुत रद्दोबदल के साथ अपरिवर्तित बनी रहती हैं।

यह उस समय की बात है जब भारत के सबसे अधिक और सघन आबादी वाले प्रांत के परिवारों की तीन पीढ़ियां एक ही छत के नीचे रहती थीं। उपन्यास का परिवेश उदारीकरण के आमूल सुधारों से पूर्व का वह कालखंड है, बहुतेरे लोग जिसे आधुनिक भारत का निर्णायक मोड़ कहते हैं, जब भारत में एक युग का अवसान होने को था।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड: यहां हनी ट्रैप- युवती के जाल में फंसा व्यापारी, कर डाली करोड़ों की ठगी

अमित किसी भी तरह लिखने के हामी नहीं। उनके लेखन में जड़ों को प्रतिबिंबित करने वाली संवेदनाओं को स्थान मिलता है। यह आपबीती से कहीं ज्यादा वर्तमान को आकार देते उन संघर्षों और उनसे पार पाने की राहों का तब्सरा है। वह पीड़ा को दबी-छुपी नहीं रहने देते। उनके पात्र जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करने में समर्थ होते हैं।
कई स्थलों पर वह काव्यात्मक शैली का आश्रय लेते हैं; खास तौर पर वहां, जहां वह प्रश्नाकुल हो उठते हैं और अनुत्तरित रह जाने पर उन्हें दार्शनिक उक्तियां कहनी पड़ती हैं।

अमित शब्द-शक्ति को जाग्रत् करने की कला जानते हैं। वे परिवेश को गढ़ने में समर्थ रचनाकार हैं। वे उपभोक्ता वस्तुओं को कोश से बाहर निकालने के लिए उन उत्पादों के व्युत्पत्ति मूल तक की यात्रा करते हैं और नोक-नक्काशी के साथ उसे फसानों में, तरानों में, तस्वीरों में दर्ज करते चले जाते हैं। सांस्कृतिक बदलाव के अर्थ-संसार को रचते हुए यह अभिव्यक्ति और अर्थवान् हो उठती है।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड : 9वीं की छात्रा के प्रेंग्नेंट होने पर खुला मामला,12वीं के छात्र पर केस..

रचना के मुखपृष्ठ पर नजर डालें तो उखड़े प्लास्टर वाला जर्जर मकान, परित्यक्त आला (देवल) शीर्ष पर पुराना बदरंग कैलेंडर मानो ढ़हती संयुक्त परिवार प्रणाली और बिखरते रिश्तों की मुकम्मल कहानी को एक ही तस्वीर में बयां कर डालता है।

यह भी पढ़ें 👉  देहरादून :(बड़ी खबर) लोकजीत सिंह को मिली बड़ी जिम्मेदारी

‘तीन’ में आप अनायास खुद को पीछे मुड़कर उस दौर पर निगाह डालते हुए पाते हैं। संयुक्त परिवारों के उस दौर में व्यक्ति टेलीविजन के लालसा भरे विज्ञापनों के जरिए बाहर की दुनिया से परिचय बढ़ा रहा था। हालांकि वह आहट बहुत धीमी थी। आज के ऊर्ध्व विस्तार के बरक्स वह क्षैतिज विस्तार का दौर था। उपभोक्तावाद की धीमी आमद शुरू हो चुकी थी। तीन पीढ़ियों के आचार-विचार और परस्पर संवाद के जरिए व्यक्त होता पीढ़ी-अंतराल, लेखक की पिता को सही मायनों में श्रद्धांजलि है।

 -ललित मोहन रयाल
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें

Subscribe
Notify of

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments