रंगीली बिंदी, घागर काई, धोती लाल किनर वाई, हाय हाय हाय रे मिजाता, हो हो होई रे मिजाता, पहाड़ के डाने काने में गूंजने वाली यह आवाज आज हमारे बीच नहीं रही लेकिन उनके गाए गीत हमेशा आप पहाड़ वासियों के दिलों में अमर रहेंगे, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोक गायक सुर सम्राट हीरा सिंह राणा (हिरदा) की आज सुबह 2:30 बजे दिल का दौरा पड़ने की वजह से उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक हीरा सिंह राणा हम सब को अलविदा कह कर चले गए।Kumaoni Folk Singer Heera Singh Rana Passes Away
बात पहाड़ की लोकगायक बीके सामंत की कलम से (भाग 5)
16 सितंबर 1942 को ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में जन्मे विराट व्यक्तित्व के धनी अपनी सुरीली आवाज के जादूगर माने जाने वाले हीरा सिंह राणा का आज 13 जून 2020 को निधन हो गया है उत्तराखंड प्रदेश की लोक कला संगीत और संस्कृति के लिए आज का दिन बेहद दुखद है, हीरा सिंह राणा उत्तराखंड भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष दिल्ली सरकार और उत्तरांचल भारत सेवा संस्थान के मुख्य सलाहकार पद पर भी थे। उत्तराखंड की पीड़ा को अपने गीतों के माध्यम से जन गीत बनाने वाले हीरा सिंह राणा के निधन पर उत्तराखंड के लोक कलाकारों के बीच शोक की लहर है उनके चले जाने की खबर सुनते ही उनके चाहने वाले लोग कलाकारों और अनेक राजनीतिज्ञों सहित आम लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं।Kumaoni Folk Singer Heera Singh Rana Passes Away
उत्तराखंड- हिमालय का श्रृंगार पुष्प बुंराश खतरे में
देश के अग्रणी हिंदी साप्ताहिक पत्रिका ‘दिनमान’ ने 1976 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हीरा सिंह राणा की उत्तराखंड की महिलाओं के यथार्थ को रेखांकित करने वाली कविता ‘के सुणौं मैं तुमुकें पहाड़क सैंणियों का हाला’ (पहाड़ की महिलाओं का हाल क्या सुनाऊं) को प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया था। तब से उन्हें अनेकों बार सम्मानित और पुरस्कृत किया गया।
हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे, उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी, आज भी लोगों के दिलों में उसी तरह बसे हैं जिस तरह हुआ बचपन से गाते आ रहे हैं, खबर पहाड़ भी उत्तराखंड के इस महान लोग गायक के निधन पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है
‘बखता त्यार बलाई ल्हयून’ सटीक बैठती है शेरदा ‘अनपढ़’ की ये रचनाएं
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