शाबाश पहाड़ी भुला, शहर में धक्के खाना छोड़, शुरू किया अपना रोजगार..

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कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हो तो रास्ते और खुद ब खुद बनते हैं ऐसा ही कुछ पलायन का दंश झेल रहे पर्वतीय जिले चंपावत के सुदूरवर्ती गांव के दो भाइयों ने कर दिखाया दो भाइयों ने न सिर्फ अपने लिए स्वरोजगार का साधन जुटाया है बल्कि परदेश आए प्रवासियों के सामने भी रोजगार का विकल्प रखा है बाहर के शहरों में धक्के खाना छोड़ खुद यहां मेहनत कर इन दो भाइयों ने मिसाल कायम की है।

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चंपावत जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर किस्कोट गांव में दो सगे भाईयों पीतांबर जोशी एवं बलदेव जोशी ने पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए चप्पल उद्याोग खोला है। दोनों भाईयों का मुख्य उददेश्य पहाड़ से पलायन को रोकना एवं यहां के युवाओं को रोजगार से जोडऩे का है। इन दोनों भाईयों ने यूके हिल्स ब्रांड के नाम से इन चप्पलों को मार्केट में उतारा है। दोनों भाईयों ने बताया कि पिछले साल 2019 में पीएमइजीपी ग्राम उद्याोग योजना से 10 लाख रूपये का लोन लेकर काम प्रारंभ किया है।

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इस उद्योग के माध्यम से दोनों भाई हर महीना 30 से 35 हजार रूपये कमा रहे हैं। साथ ही बताया कि लोन की धनराशि को भी उन्होनें काफी कम कर दिया है। पीतांबर और बलदेव जोशी बताते हैं कि पूर्व में दोनों भाई बाहर को नौकरी करते थे। जहां बड़े भाई पीतांबर जोशी पिछले काफी सालों से मौनपालन करते आ रहे हंै। पीतांबर जोशी ने बताया कि वह हल्द्वानी नैनीताल सहित अनेक स्थानों पर मौन पालन का काम करते थे जहां पूरा महीना काम करने के बाद उनको 10 से बारह हजार रूपये वेतन मिलता था । वही छोटे भाई बलदेव जोशी बताते हैं कि वह पूर्व दिल्ली होटलों में काम करते थे जहां उनको 10 हजार रूपये मिल रहे थे। जिसके बाद दोनों भाईयों ने स्वरोजगार करने का मन बनाया और चप्पल उद्याोग खोल दिया। उन्होंने बताया कि तैयार किए गए चप्पलों को चंपावत, लोहाघाट सहित पिथौरागढ़ को भेजा जा रहा है।

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बाजार सहित ग्रामीण क्षेत्रों के लोग दुकानों की बजाए यहीं से चप्पल ले जा रहे हैं। साथ ही बताया कि अगर कंपनी ठीक ठाक रही तो यहां के स्थानीय लोगों को भी रोजगार से जोड़ा जाएगा। दोनों भाईयों ने बताया कि चप्पल बनाने के लिए वह लोग समान को दिल्ली से मंगवाते है। साथ ही बताया कि अभी दोनों भाई चप्पल ही बना रहे है। बाद में जूते भी बनाए जाएंगे। जिससे लोगों को बहार से समान मंगवाने के बजाए यहां से ही मिल जाएगा।

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