उसके बनाए जज्बात अब बिखरते होंगे
मेरी तस्वीर को देखकर अब वह किसी ओर पे भड़कते होंगे
अकेले ही तरसते होंगे अब एक झलक मेरी पाने को
क्योंकि कभी मैं भी उन्हें देखने के लिए तरसती होंगी
मेरी आँख नम हो जाती है उसे सामने देखकर
मेरा नाम सुनकर कभी तो वो भी मुस्कुराते होंगे
मैं उसकी यादो में इन उजालो मैं भी खो जाती हू
उनको भी तो ये रातो का अंधेरा मेरी याद दिलाता होगा
प्रेम के अलावा कुछ शेष ना रहा न्योछावर करने को
वो मेरे हिस्से का गम किसी और के साथ बाटता होगा
मैं “प्रीती “सी थी इसलिए प्रेम मैं ही डूबी रह गई
वो “विष” सा था जो रोज मेरे लिए बरसता रहा ….
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