timla fig pahadi timla

तिमला (अंजीर) और बेड़ू एक ऐसा फल, जिसमें बसता है पहाड़…

खबर शेयर करें -

तिमल या तिमला के नाम से जाना जाने वाला पर्वतीय फल जो अपने पौष्टिकता और औषधीय गुणों के लिए विख्यात है। तिमला को हिंदी में अंजीर के नाम से भी जाना जाता है। देवभूमि में तिमला के पत्तो को शुद्ध माना जाता है, इसीलिए तिमल के पत्तो का प्रयोग पहाड़ो में होने वाली देवी देवताओं की पूजा पाठ में किया जाता है। उत्तराखण्ड में इस फल को जंगली प्रजाति में रखा गया है इसीलिए इसकी विशेष रूप से बागवानी नही की जाती है।

कुमाऊँनी संस्कृति और पौराणिक परम्पराओ से ओत प्रोत है स्याल्दे बिखौती (BIKHOTI) मेला…

उत्तराखण्ड के अलावा यह हिमांचल, नेपाल और भूटान में भी पाया जाता है। औषधीय और पौष्टिकता से भरपूर तिमिला यानी अंजीर मधुमेय जैसी घातक बीमारियों के लिए लाभकारी माना गया है। तिमल पकते ही पहाड़ो के बच्चे पेड़ पर चढ़कर इसका बड़े ही चाव के साथ उसका सेवन करते है, यह फल गुदादार होता है जिसके अंदर से शहद की तरह मीठा पदार्थ निकलता है जो अपने स्वाद से दीवाना बना देता है, इसकी दीवानगी तब पता चलती है जब बच्चे घर वालो की डाँठ सुनने के बाद भी पेड़ से नही उतरते है।

“पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान” इस कहानी में एक जोशीले ड्राइवर की कथा के बहाने उस दौर के गँवई परिवेश का खाका खींचा गया है…

कच्चे तिमल से सब्जी भी बनाई जाती है जिसका स्वाद बेहद लजीज होता है। तिमल के पत्तो को दूध देने वाले घरेलू जानवरो को खिलाया जाता है, जिससे गाय, भैसों का दूध बढ़ाने में कारगर साबित होता है। देवभूमि में तिमिला को धार्मिक रूप से विशेष महत्व दिया गया है, जो अपनी शुद्धता के लिए जाना है, तिमल के पत्ते जिसके बिना पण्डित जी द्वारा कोई भी पूजा पाठ को आगे नही बढ़ाया जाता है। पहाड़ो से निकलने वाली नदियों के सहारे तिलम का बीज भावर और तराई तक पहुच गया है, इसीलिए अब पहाड़ में होने वाले तिमला को तराई भावर में भी देखा जा सकता है।

यह भी पढ़ें 👉  देहरादून -(बड़ी खबर) राजपाल लेघा को मिला खनन निदेशक का प्रभार

पहाड़ी उखो (ओखली) जिसकी मीठी यादें और पकवान..

पहाड़ में तिमली की दो प्रजातियां पाई जाती है जिनमे से एक का सेवन नही किया जाता है जबकि पत्तो को प्रयोग में लिया जाता है। देश में लगातार बढ़ते मधुमेय से ग्रसित मरीजों के लिए तिमिला किसी रामबाण से कम नही है। तिमल यानी अंजीर से तैयार होने वाली शुगर फ्री मिठाइयों की अधिक मांग हैं जो साधारण मिठाइयों से महंगी भी मिलती है। पहाड़ के संघर्षशील जीवन में इस तिमिला का भी अहम योगदान रहा है।पहाड़ में सांस्कृतिक विरासत के वाहक रहे इस फल को आज भी बड़े चाव के साथ बच्चों की पहली पसंद माना जाता है, साथ ही ऐसी कोई छोटी बड़ी पूजा नहीं जिसमें तिमला के पत्ते का इस्तेमाल ना होता हो,

उत्तराखंड- ईजा- बौज्यू के साथ घोड़ाखाल (GHORAKHAL) के गोल्ज्यू देव् के दर्शन.. पढ़े यात्रा वृतांत….

सेब जैसा गुणकारी है पहाड़ी फल तिमला (Timla, Ficus auriculata)

तिमला एक बहुत ही महत्वपूर्ण फलों में से है। जबकि आज का पहाड़ी मानव तिमले को वो महत्त्व नहीं देता है परन्तु कॉमन फिग के नाम से प्रचलित होने के कारण बाजार से 3०० -5०० रूपये किलो के भाव से खरीदता है।

नाम – अंजीर (पहाड़ी नाम तिमला)

किंगडम – पादप

यह भी पढ़ें 👉  देहरादून - (बड़ी खबर) निकाय चुनाव को लेकर आया UPDATE

अंग्रेजी नाम – फिग

वानस्पतिक नाम – फ़िकस कैरिका

प्रजाति – फ़िकस

जाति – कैरिका

कुल – मोरेसी

क्या आज भी पाए जाते है वो आशिक…

तिमला एक ऐसा फल है जो पेड़ पर पक के गिर जाने के बाद सूखा कर खाया जाता है सूखे फल को टुकड़े-टुकड़े करके या पीसकर दूध और चीनी के साथ खाते हैं। इसका स्वादिष्ट जैम और मुरब्बा भी बनाया जाता है। इसमें कैल्सियम तथा विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है।

प्रकार –


(१) कैप्री फिग, जो सबसे प्राचीन है और जिससे अन्य अंजीरों की उत्पत्ति हुई है,

(२) स्माइर्ना,

(३) सफेद सैनपेद्रू और

(४) साधारण अंजीर।

भारत में मार्सेलीज़, ब्लैक इस्चिया, पूना, बँगलोर तथा ब्राउन टर्की नाम की किस्में प्रसिद्ध हैं।

तिमला मध्यसागरीय क्षेत्र और दक्षिण पश्चिम एशियाई मूल की एक पर्णपाती झाड़ी या एक छोटे पेड़ है जो पाकिस्तान से यूनान तक पाया जाता है। इसकी लंबाई 3-10 फुट तक हो सकती है। अंजीर विश्व के सबसे पुराने फलों मे से एक है।

पानी का मन्दिर है पहाड़ का नौला, अपनी शुद्धता से देता है अपना प्रमाण…

यह फल रसीला और गूदेदार होता है इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। यह विश्व के ऐसे पुराने फलों में से एक है, जिसकी जानकारी प्राचीन समय में भी मिस्त्र के फैरोह लोगों को थी।

आजकल इसकी पैदावार ईरान, मध्य एशिया और अब भूमध्यसागरीय देशों में भी होने लगी है।आज विश्व का सबसे पुराना अंजीर का पेड़ सिसली के एक बगीचे में है।

अंजीर का वृक्ष छोटा और पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है। तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है। हाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है।

यह भी पढ़ें 👉  देहरादून -(बड़ी खबर) शिक्षकों के बायोमेट्रिक को लेकर नया आदेश

ग्वाला पहाड़ के मुस्कान की पारम्परिक कला..पढ़िए अभिव्यक्ति

पौष्टिक तत्व –
अंजीर कैलशियम, रेशों व विटामिन ए, बी, सी से युक्त होता है। एक अंजीर में लगभग 30 कैलरी होती हैं। एक सूखे अंजीर में कैलरी 49, प्रोटीन 0.579 ग्राम, कार्ब 12.42 ग्राम, फाइबर 2.32 ग्राम, कुल फैट 0.222 ग्राम, सैचुरेटेड फैट 0.0445 ग्राम, पॉलीअनसैचुरेटेड फैट 0.106, मोनोसैचुरेटेड फैट 0.049 ग्राम, सोडियम 2 मिग्रा और विटामिन ए, बी, सी युक्त होता है।
तिमला में 83 प्रतिशत चीनी होने के कारण यह विश्व का सबसे मीठा फल है। डायबिटीज के रोगियों को दूसरे फलों की तुलना में अंजीर का सेवन खासतौर से लाभकारी होता है। अंजीर पोटैशियम का अच्छा स्रोत है, जो रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है।

तिमला का महत्व जानिये घसेरी यूट्यूब चैनल के सौजन्य से

तिमला का महत्व जानिये घसेरी यूट्यूब चैनल के सौजन्य से

“राहों में काटे थे फिर भी वो चलना सीख गये ! “वो गरीब का बच्चे थे हर दर्द में जीना सीख गये !!

बेड़ू (अंजीर)

बेड़ू भी इसी प्रकार पहाड़ी फल है जो 12 महीने मिलता है बच्चों की पहली पसंद इस फल को उत्तराखंड लोक संस्कृति से भी जोड़कर देखा जाता है आज भी पहाड़ के हर बच्चे बुजुर्ग महिला सबकी जुबान पर बृजेंद्र लाल साह का लिखा हुआ यह गीत “बेडू पाको बारोमासा, ओ नारण काफल पाको चैता, मेरी छैला, रहता है। बेड़ू भी इसी प्रकार का पहाड़ी अंजीर फल है जो आज भी पहाड़ में बेहद पसंद किया जाता है और औषधीय गुणों से भरपूर भी है।

अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें

Subscribe
Notify of

3 Comments
Inline Feedbacks
View all comments