क्या आज भी पाए जाते है वो आशिक…

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आशिकी और आशिकों की कहानियां बहुत लंबी होती है। हर युवा की अलग ही कहानी होती है अलग ही किस्से होते है। वैसे प्यार मोहब्बत आशिकमिजाजी राजाओं के समय से लेकर अब तक बरकरार रही है, तौर तरीके जरूर बदल गए हो लेकिन मोहब्बत का नशा आज भी आशिकों की जान तक ले बैठता है। कहते हैं जो काम प्यार से हो जाया करते है वह कभी जंग से नही हो सकते। इस आधुनिक युग यानी मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया से पहले गली मोहल्लों की मोहब्बत भी गज़ब के किस्से समेटकर रखा करती थी। स्कूल या कॉलेज जाते वक्त लड़की पर किसी लड़के की नज़र पड़ती है, लड़की की खूबसूरती उसे दीवाना बनाने के साथ साथ पागल बनाने के लिए बहुत होती है। फिर लड़के द्वारा उसके घर के साथ साथ खानदान की जासूसी, उसके और लड़की के बीच में कौन रोड़ा बन सकता है उनकी लिस्ट तैयार करना, पूरे मोहल्ले को ये बता देना की आज से उसको कोई न देखेगा न ही छेड़ेगा, लड़के द्वारा इस पूरे विशेष पाठ्क्रम को तैयार करने में लगभग हफ्ताभर लगता था

पानी का मन्दिर है पहाड़ का नौला, अपनी शुद्धता से देता है अपना प्रमाण…

जबकि इन बातों से लड़की को कोई लेना देना नही होता था उसे यह भी पता नही होता था कि उसपर कोई सीसीटीवी की तरह नज़र रख रहा है। जबकि इस विशेष पाठ्यक्रम की सभी किताबे मोहल्ले के बच्चे पढ़ चुके होते थे। विशेष तौर पर उन्हें पढ़ाने की कोसिस की जाती थी जिनसे लड़के की आशिकी में खलल न पड़े… यह सब हुनरमंद लड़के द्वारा अपनी पढ़ाई के साथ साथ किया जाता था। लड़के को लड़की के घर के इर्द गिर्द एक छोटा चटक और शातिर बच्चे की तलाश होती थी, जिसका लड़की के घर मे आने जाने के साथ साथ लड़की से उसकी बातें होती हो, बच्चे पर लड़के द्वारा कुछ दिन रेकी करने के बाद प्रलोभन दिया जाता था, कोसिस की जाती है कि उसकी जो भी खाने पीने तक कि इच्छा है वह पूरी की जाएगी बस वह बेहतर संदेशवाहक की भूमिका निभा ले, लड़के द्वारा संदेशवाहक को तैयार किया जाता है जो लड़के और लड़की के बीच सेतु का काम करे, यानी लड़के द्वारा लिखे गए प्रेम पत्र लड़की तक सावधानी पूर्वक पहुचाने का कार्य करे, संदेशवाहक अगर थोड़ा भी डरफोक होता था तो लड़की के परिवार की डर से कई संदेश बीच में ही गोल कर देता था लड़के को बोलता था कि निशाना फिट लगा है या आज ये बोला, कभी कभी लड़की की भूमिका सन्देश वाहक खुद ही निभा लेता था, इस घटनाक्रम को लगभग दो महीने तक लग जाते थे।

“राहों में काटे थे फिर भी वो चलना सीख गये ! “वो गरीब का बच्चे थे हर दर्द में जीना सीख गये !!

क्या आज भी पाए जाते है वो आशिक… लड़की की तरफ से कोई ठीक ठाक सा जवाब नही आता तो लड़के के अंदर का आशिक़ लड़की के सामने जाने और उससे सच जानने की हिम्मत कर बैठता था, लड़के द्वारा ट्यूशन से आते वक्त तमाम सवाल पूछने के साथ ही अपनी अरमानों को जुबा से कह दिया जाता है, इन सब मामले में लड़की को गम्भीरता से कुछ पता नही होता है तो वह मना कर देती है। लड़के के सभी अरमान ठंडे हो जाते है, चुप चाप घर को चला जाता है इस बीच आशिक़ पूरे मोहल्ले में बदनाम जरूर हो जाता था। एक लड़की को पटाने के चक्कर में लड़के महीनों काट देते थे, पट गई तो सही है नही तो फिर दूसरी की तलाश, तलाश तलाश में उम्र बीतने के साथ ही पूरे इलाके में आशिकमिजाजी का ठप्पा अलग लग जाया करता था। इस आधुनिक युग के बच्चे क्या जाने बेकरारी और तड़प शब्दो का भी मोहब्बत में बहुत योगदान रहा है। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम के जमाने में गली मोहल्ले में आशिकों की चर्चा तक नही होती है। सब गुपचुप कब कहा का टांका कहा भिड़ गया हवा तक नही लगती है। आधुनिकता ने हमे हर मामले में फ़ास्ट तो किया पर किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए समय नही दिया। मोबाइल के नेट ने दुनिया को मुट्ठी में तो कर लिया है पर अपनो को मुट्ठी से बाहर, घर परिवार में भी मान सम्मान दिल से नही दिमाग से किया जाने लगा है।

बचपन में आपके स्कूल में कई (तेरे नाम) फ़िल्म के सलमान रहे होंगे..

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