देश भयंकर कोरोनावायरस के चपेट से लड़ रहा है पूरे देश में लॉकडाउन है लेकिन यह लॉक डाउन उन गरीब असहाय ध्याडी मजदूर और सड़क किनारे रहने वाले लाखों लोगों के लिए अभिशाप बनकर आया है, हर गरीब को डर है कि कोरोना से मरने से पहले कहीं वह भूख से ना मर जाए. चलो गांव चलते हैं वहां कुछ न कुछ तो खाने को मिलेगा, इसी आस में रोजाना सड़कों पर हजारों प्रवासी मजदूर अपने अपने गांव की तरफ चलते दिख रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चे बड़े बुजुर्ग मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हैं, हम घर बैठे इनकी तकलीफ का अंदाजा भी नहीं लगा सकते, सरकारी प्रयास केवल नाम मात्र का सहारा है, हजारों की आबादी में अपने घरों की तरफ रुख करते यह मजदूर अपने परिवार के साथ इस बात की तस्दीक करने को काफी हैं कि अगर सरकारों ने समय रहते इनके लिए शेल्टर होम, रहने खाने और स्वास्थ्य की व्यवस्था की होती, तो आज भारत की एक दुखद तस्वीर सड़कों पर न दिखती, सोशल मीडिया में उभरता दर्द इस बात को बताने को काफी है कि जब विदेशों से एअरलिफ्ट कर भारतीयों को लाया जा सकता है तो इन गरीब मजदूरों को भी उनके घर पहुंचाया जा सकता है लेकिन नीति नियत और मजबूरी आज भी वही कहती है जो सालों पहले से चलता आ रहा है…
“राहों में काटे थे फिर भी वो चलना सीख गये !
“वो गरीब का बच्चे थे हर दर्द में जीना सीख गये!!
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