साल 1933 की बात है. गांधी पूना में थे और सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर सामाजिक समरसता और हरिजन उत्थान के मुद्दे पर उपवास पर थे. उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और बंगाल से डॉक्टर बी सी रॉय तीमारदारी के लिए उपस्थित हुए. गांधी ने उनसे पूछा कि क्या वो सारे देशवासियों के मुफ्त इलाज की व्यवस्था कर सकते हैं? डॉक्टर के ना बोलने पर उन्होंने स्वयं इलाज लेने से इस कारण से मना कर दिया कि ‘जब उनके लाखों–करोड़ों गरीब देशवासियों को ही इलाज उपलब्ध नहीं है तो वो कैसे अपना इलाज करवा सकते हैं?’
डॉक्टर रॉय ने शानदार जवाब दिया. उन्होंने कहा कि ‘वो मोहन दास करमचंद गांधी का इलाज करने नहीं आए हैं वो उसका इलाज करने आए हैं जो चालीस करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधि है. उसकी नब्ज़ चालीस करोड़ भारतीयों की नब्ज़ है. उसका जिंदा रहना चालीस करोड़ भारतीयों के अस्तित्व का बचे रहना है!’
‘तुम एक मुंसिफ अदालत के तीसरे दर्जे के वकील के जैसे दलील दे रहे हो’ हंसते हुए गांधी ने कहा और शिफ़ा स्वीकार की. गांधी जी को झुकना पड़ा!
1880 में जन्मे बिधान चंद्र रॉय कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेने के बाद ‘बार्थोलोम्यू अस्पताल’ इंग्लैंड से पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेना चाहते थे. कुल बारह सौ रुपयों के साथ वो 1909 में ब्रिटेन पहुंच गए. उन्होंने आवेदन किया जो अस्वीकृत हो गया. वहां के डीन एशिया के किसी छात्र को दाखिला देने के पक्षधर नहीं थे. बिधान चंद्र को वहीं से डिग्री चाहिए थी. उन्होंने पुनः आवेदन कर दिया. फिर से रिजेक्ट हो गया. बिधान चंद्र निराश हो सकते थे लेकिन उन्हें कलकत्ता में कॉलेज की दीवार पर पढ़ी एक सूक्ति याद हो आई– Whatever thy hands findeth to do, do it with thy might… यानी आपके हाथों में जो भी काम हो उसे पूरी ताक़त के साथ करना चाहिए. उन्होंने फिर से आवेदन दिया. आज इस बात को यकीन करने में मुश्किल होती है कि कुल तीस बार आवेदन करने के बाद आख़िरकार डीन को उन्हें दाखिला देने पर मजबूर होना पड़ा!
उन्हें पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री तो मिली ही एक ऐसी दुर्लभ उपलब्धि हासिल हुई जो दुनिया में बहुत कम लोगों को हुई है. उन्हें ‘रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस’ और ‘रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स’ की सदस्यता एक साथ हासिल हुई. ये साल 1911 की बात है.
एक समय ऐसा भी था कि वो देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी कंसल्टिंग प्रैक्टिस वाले डॉक्टर थे. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार वो किसी शहर आते या किसी रेलवे स्टेशन पर उनकी गाड़ी के थोड़ी देर रुकने की सूचना भर होती सैकड़ों संभावित मरीज इकट्ठा हो जाते.
आज़ादी के बाद तीन बार मुख्य मंत्री चुने जाने और 01 जुलाई 1962 यानी उनकी मृत्यु के दिन तक उनका पेशा, आम जनमानस की सेवा, राजनीति और इन तीनों के बीच संतुलन सब कुछ अद्भुद रूप से जैसे उसी सूक्ति को यथार्थ की कसौटी पर कसने का चमकता उदाहरण सा बना रहा.
आधुनिक बंगाल के निर्माता, भारत रत्न, बिधान चंद्र रॉय का जन्म भी 01 जुलाई को हुआ था, 1882 में. उन्हें सम्मान देने के लिए ही 01 जुलाई को हमारे देश में नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप मनाया जाता है. हैप्पी डॉक्टर्स डे टू द कैरियर्स ऑफ दिस वंडरफुल लेगेसी!
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