हल्द्वानी- उत्तराखण्ड राज्य में पशुओं के सूखे चारे के रूप में मुख्य रूप से उपयोग किये जाने वाले गेहूॅ के भूसे की अत्यन्त कमी होने तथा कतिपय व्यापारियों द्वारा भूसे को बड़ी मात्रा में अनावश्यक रूप से भण्डारण किये जाने के कारण उत्पन्न विकट परिस्थितियों में पशुस्वामियों द्वारा बड़ी संख्या में पशुओं को परित्यक्त किये जाने से सड़क परिवहन में अवरोध/ दुर्घटनाएं तथा कानून व्यवस्था को चुनौती पैदा होने की आशंका के दृष्टिगत पशुओं के लिये पर्याप्त मात्रा में उचित दरों में भूसा/चारा उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है।
जानकारी देते हुये जिलाधिकारी/जिला मजिस्टेªट धीराज सिंह गर्ब्याल बताया कि सचिव पशुपालन, मत्स्य, डेरी एवं सहाकारिता उत्तराखण्ड शासन द्वारा जारी निर्देशों के क्रम में दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-144 के प्राविधानों के तहत आज 07 मई (शनिवार) को निषेधाज्ञाय जारी की गई है। उन्होने बताया कि भूसे को ईट भट्टा एवं अन्य उद्योगों में इस्तेमाल ना किया जाने एवं इस हेतु इन उद्योगों को भूसा विक्रय पर आगामी 15 दिन तक रोक लगाई जाती है।
भूसा विक्रेताओं द्वारा भूसे का अनावश्यक भण्डारण एवं काला बाजारी ना तो की जायेगी ना करवाई जायेगी। उन्होने कहा कि जनपद में उत्पादित भूसे को राज्य से बाहर परिवहन पर तत्काल एक पक्ष हेतु रोक लगाई जाती है साथ ही जनपद में पुराल जालाने पर तत्काल रोक लगाई जाती है। श्री गर्ब्याल ने बताया कि यह आदेश जनपद की सीमार्न्तगत आदेश जारी होने की तिथि से आगामी 22 मई तक प्रभावी रहेगा, बशर्ते कि इससे पूर्व इसे निरस्त न कर दिया जाये। उन्होने इस आदेश की प्रति जिला कार्यालय, मुख्य पशुचिकित्साधिकारी कार्यालय, तहसील मुख्यालयों, विकासखण्ड मुख्यालयों, थानों, नगर पालिका परिषद/ नगर पंचायतों के सूचना पट्टों पर चस्पा करने के साथ-साथ समस्त थानाध्यक्षों द्वारा ध्वनि विस्तारक यंत्रों अथवा डुग-डुगी पिटवाकर इसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार करवाया जायेगा।
जिला मजिस्टेªट ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति उक्त आदेशों का उल्लघंन करेगा, तो उसका यह कृत्य भारतीय दण्ड संहिता की धारा-188 के अर्न्तगत दण्डनीय होगा। उन्होने बताया कि यह मामला विशेष परिस्थितियों का है, और इतना समय नही है कि सभी सम्बन्धित पर इसकी तामीली करके उनका पक्ष सुना जा सके। इसलिए आदेश एक पक्षीय पारित किया जा रहा है।
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हल्द्वानी- मुख्य कृषि अधिकारी डा. वी.के.एस.यादव ने बताया कि जनपद के समस्त कृषक बन्धुओं को अवगत कराया जाता है कि पशुपालकों द्वारा पशुओं के सूखे चारे के रूप में मुख्य रूप से गेहूॅ के भूसे का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह के द्वितीय पक्ष तथा मई माह में गेहूॅ की फसल कटाई के बाद भूसा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है तथा इसी समय भूसा न्यूनतम बाजार भाव पर भी उपलब्ध हो रहा है। उन्होने कहा कि हरियाणा तथा अन्य राज्यों द्वारा भूसे की आपूर्ति पर रोक लगाने के कारण उत्तराखण्ड राज्य में भूसे की अत्यंत कमी हो रही है। जनपद के समस्त गेहूॅ उत्पादक कृषक बन्धु ओं से अपील है कि गेहूॅ फसल की कटाई-मंडाई के उपरान्त अवशेष भूसा जलाने के बजाय अपने नजदीकी भूसा संग्रह केन्द्र में उपलब्ध करा दें जिससे पशुपालकों को भूसे की कमी की समस्या का समाधान होने के साथ पशुओं को सूखा चारा उपलब्ध हो सके। मुख्य कृषि अधिकारी ने बताया कि ऐसे कृषक जिन्होंने अपनी गेहूॅ की फसल कम्बाईन से कटाई है वे सभी कृषक गेहूॅ की फसल के अवशेष को खेत में न जलायें बल्कि जनपद में स्ट्रा रीपर जो कस्टम हायरिंग सेन्टर योजना के अर्न्तगत अनुदान पर उपलब्ध कराये गये है से किराये पर भूसा तैयार करा कर निकटतम भूसा संग्रह केन्द्र पर उपलब्ध कराने का कष्ट करें। उन्होने बताया कि गेहूॅ फसल के अवशेष को जलाने से पर्यावरण को भारी क्षति होती है साथ ही गेहूॅ का भूसा पशुओं के लिए अच्छा चारा है वह भी जल कर नष्ट हो जाता है।
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