हल्द्वानी : निकाय चुनाव की सुगबुगाहट होते ही इन दिनों नेताजी सुपर एक्टिव हो गए हैं। मन में कुर्सी का ख्वाब, गली मोहल्लों में समर्थकों का सैलाब, इन्हीं सब सपनों के बीच नेताजी इन दिनों बदल भी गए हैं। अक्सर सामान्य सी ड्रेस पहनने वाले नेताजी इन दिनों खादी का कुर्ता पजामा सिलवा चुके है, और सड़क पर चलते हुए झुक कर सलाम भी करने लगे हैं, अपनी महंगी गाड़ी छोड़ शहर में अक्सर पैदल चलने का प्रयास भी हो रहा हैं। नाते रिश्तेदारी में भी आना-जाना शुरू हो गया है, जात बिरादरी के लोगो को भी एक करने की कवायद चल रही है। यही नहीं नेता जी को अचानक अपने आसपास समस्याएं भी दिखने लगी हैं। और ऐसा हो भी क्यों ना? क्योंकि हल्द्वानी नगर निगम में 60 वार्ड और एक मेयर का जो चुनाव है। और नेता बनना किसे पसंद नहीं? तो इसी चाह में हल्द्वानी नगर निगम में दावेदारों की एक बड़ी फौज तैयार हो रही है। वार्ड तो वार्ड मेयर की एक कुर्सी के लिए भी गजब की पैमाईश चल रही है। हालांकि कुर्सी कैसे बनेगी इसका इंचटेप जनता के हाथ में है।
- किसी को लगेगा झटका, तो कोई देगा पटका
चुनाव ही वह समय है जिसमें दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बनाने में देर नहीं लगती, इस चुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है कई नेताओं ने तो गिरगिट को भी मात दे दी हैं। पलटी मार कर पहले ही फील्डिंग सजा ली है। यह सब खेल तब तक चलता रहेगा जब तक निकाय चुनाव में मतदान नहीं हो जाते। अब बात सरकार की करें तो सरकार इतनी जल्दी चुनाव करवाने को तैयार नहीं है। जैसे ही निकाय में प्रशासकों के कार्यकाल 3 महीने बढ़ाए गए उससे यह स्पष्ट है की सरकार थोड़ा समय चाहती है, हालांकि यह मामला कोर्ट में चल रहा है। लेकिन प्रशासको के कार्यकाल बढ़ते ही यहां नेताजी के पैर ढीले पड़ गए हैं क्योंकि चुनाव पीछे जो चले गए हैं। कई माननीय तो चुनाव की स्पीड के हिसाब से ही उग कर सामने आए हैं। और कई बदलते समीकरणों के इंतजार में अपना कुर्सी का सपना सजाए हुए हैं। हर किसी को इस बात की टेंशन है की सीट सामान्य होगी या महिला, या ओबीसी होगी या आरक्षित अपने गुणा – गणित में हर कोई व्यस्त है। पर इन सब के बीच अगर कोई चुप्पी सादे बैठी है तो वह है वोट देने वाली जनता, इस बार उनकी खामोशी क्या नया समीकरण बनाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता।
- राजनीतिक दलों के जिला अध्यक्षों को आवेदन संभाले रखने की टेंशन।
वैसे हर कोई जानता है की टिकट कैसे-कैसे जतन से मिलते हैं या कहे जुगाड़ से मिलते हैं, लेकिन राजनीतिक मर्यादा के काैकस का भी अपना एक मजा है। बढ़िया सा बायोडेटा बनाकर अपनी पार्टी के जिला अध्यक्ष को आवेदन के रूप में देना है और फिर जनता की सेवा में जुट जाना है। सब के बीच एक परेशानी राजनीतिक दलों के जिला अध्यक्षों के पास भी है अभी निकाय चुनाव का पता नहीं है लेकिन उनको अपने दावेदारों के आवेदन को संभाल कर रखने की टेंशन अलग है। क्योंकि मेयर हो या पार्षद भर भर कर आवेदन आए हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
हल्द्वानी काठगोदाम नगर निगम 60 वार्ड तक फैला है जिसमें तीन विधानसभाएं आती हैं हल्द्वानी, लालकुआं और कालाढूंगी, और इन इन 60 वार्ड में वर्तमान तक लगभग 2 लाख 41 हजार मतदाता है। आखिरी चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डॉ जोगेंद्र रौतेला को 64793 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के सुमित हृदयेश को 53939 वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर सपा के शोएब अहमद को 9234 वोट मिले थे। पिछला चुनाव लगातार दूसरी बार डॉ जोगेंद्र रौतेला ने जीता था। अगर इतिहास की बात करें तो हल्द्वानी 1942 में टाउन एरिया घोषित हुआ था और 1943 में यह अस्तित्व आया जब दया किशन पांडे अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए वह दो बार अध्यक्ष रहे उनके बाद हीरा बल्लभ बेलवाल चार बार पालिका अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उनका कार्यकाल 1977 तक चला। इसके बाद 1988 में नवीन चंद्र तिवारी पालिका अध्यक्ष बने। फिर सुषमा बेलवाल और फिर हेमंत सिंह बगड़वाल और 2008 से 2011 तक रेनू अधिकारी पालिका अध्यक्ष रही और फिर हल्द्वानी बन गया नगर निगम, तब से यह सीट भाजपा के डॉक्टर जोगेंद्र पाल सिंह रौतेला के पास है। इस बार यह सीट किसके पाले में जाएगी यह आने वाले समय में पता चलेगा।।
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