पूरे देश में इस समय सांप्रदायिक रूप से जो माहौल बना है उस पर उत्तराखंड की सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुराना बाजार में होली का सांप्रदायिक सौहार्द भारी पड़ता है. क्योंकि यहां की बात ही कुछ और है. यहां सांप्रदायिकता के रंग को खत्म कर होली का रंग सबसे ऊपर रहता है यही वजह है कि यहां होली की चीर बांधने से लेकर होली की छलड़ी तक मुस्लिम परिवारों का अहम रोल रहता है.

पिथौरागढ़ के पुराना बाजार में होने वाली होली में हिंदू होली गाते हैं तो मुस्लिम ढोल की थाप देते हैं कई बार सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने के बाद भी यहां की होली में कभी कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि सांप्रदायिकता के रंग से मजबूत यहां के होली के त्योहार का रंग है.
सांप्रदायिक सौहार्द के रंगों की होली की कहानी
बताया जाता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व उत्तराखंड के पिथौरागढ़ क्षेत्र में जब नगर का पहला बाजार बसना शुरू हुआ, तब मीर फैमिली की लोग यहां पहुंचे और उन्होंने यहां बाजार में छोटी-छोटी दुकानें शुरू की. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने भी कारोबार करना शुरू किया और ऐसे पिथौरागढ़ का पुराना बाजार अस्तित्व में आया. लगभग 100 साल पहले से यहां होली का आयोजन शुरू हुआ. जिसमें सभी ने भागीदारी की और इसी रंगो के त्योहार से जिसमें मीर फैमिली के लोग भी शामिल हुए होली की रंगत बढ़ने लगी. धीरे धीरे बाजार में जमा मस्जिद बनी और उसी के बगल में होली आयोजन स्थल भी बना. आज भी मीर परिवार की पांचवी पीढ़ी यहां कारोबार कर रही है और पूरे उत्साह के साथ रंगों के इस त्यौहार को सांप्रदायिक सौहार्द का रंग देकर एक अनूठी मिसाल कायम करने में भागीदारी करती है.

आज मीर फैमिली की पांचवी पीढ़ी के सिकंदर अली और तोहराब अली होली में चीर लगाने से लेकर ढोलकी वादन कर रहे हैं. और आपसी भाईचारे अमन चैन और सौहार्द की मिसाल इस होली में हिंदू मुस्लिम आपस में होली मना कर इस रंगों के त्यौहार को और भी सौहार्दपूर्ण मनाते हैं.


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