उत्तराखंड में भैयादूज पर बनाये जाते हैं च्यूड़े

भैयादूज पर बनाये जाते हैं च्यूड़े, ऐसे पूजे जाते हैं भाई, पढ़िए पहाड़ की परंपरा

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रोशनी का पर्व दीपोत्सव का आगमन हर किसी के मन में मानवता का दीप जलाये इस समय उमंग, हर्षोल्लास लेकर दीपावली के पर्व की धूम मची हुई है वहीं दूसरी ओर इस समय वैश्विक महामारी कोरोना ने भी अपने पांव पसारे हैं। अनलाक भले ही हो किन्तु अभी भी बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है। जिससे कोरोना की जंग को हम सभी जीत सकें। इस समय कोरोना से निबटने के लिए सोशल डिस्टेंसिंंग व मास्क पहनकर अपनी-अपनी सुरक्षा का ध्यान भी हर आमजनमास इस समय अपनाने का प्रयास कर रहा है। दो गज की दूरी, मास्क जरूरी का मंत्र अपनाकर कोरोना को हराने भगाने का प्रयास हर भारतवासी इस समय कर रहा है। भारतभूमि अपनी एकता अखण्डता के लिए सदैव ही विश्वविख्यात रही है और सर्वधर्म का हमारा प्यारा राष्ट्र सभी त्यौहारों उत्सवों को सदैव ही भाईचारे आपसी मेलमिलाप के साथ मनाने के लिए विश्व में जाना जाता है।देवभूमि उत्तराखंड भी देवों की तपोभूमि के नाम से जानी जाती है वहीं इसकी पावन परंपराऐं हमें बहुत कुछ प्रेरणा प्रदान करती हैं। भारतभूमि व देवभूमि उत्तराखण्ड जहां होता है आस्था का अटूट संगम व जहां अपनी सुंदर रंग बिखेरती हैं परंपराऐं । संस्कृति, सभ्यता व ऐसी ही परंपराओं को संजोने का काम सदैव से ही करते आये हैं देवभूमि उत्तराखण्ड व पावन भारतभूमि के गाँव। आज आधुनिकता की चकाचौंध हो या रोजगार कर्मभूमि के रूप में भले ही पलायन निरन्तर जारी हो या पलायन से अनेक गाँव खाली हो चुके हों। किन्तु आज भी हर त्यौहार पर गांवों से पलायन कर चुके लोग इन परंपराओं के लिए अपने- अपने गांवों अपनी जन्मभूमि,मातृभूमि का रूख करते हैं और सभी मिलकर जीवंत रखते हैं महान परंपराऐं। परंपराओं ने सभी को प्रकृति प्रेम, एकता, अखण्डता, पशु – पक्षी प्रेम, वनों, नदियों,नौलों पारंपरिक जलस्रोतों आदि अनेक प्रेरणादायक कार्यों से भी सदैव जोड़ा है। रोशनी का पर्व दीपोत्सव जहां असत्य पर सत्य की विजय की याद दिलाता हैं वही हर मन में सच्चाई, पावनता का दीप प्रज्वलित करने की प्रेरणा भी देता है ।

“आओ हम सब मिलकर अब, मानवता के दीप जलायें।
रोशन करें हम जग को अब, आओ हम दीवाली मनायें”।

इन पावन त्यौहारों में छुपी हुई हैं अनेक परंपराऐं जो समाज में समानता एकता को दिखलाती हैं जो प्रेरणा देती हैं राग द्वेष से मुक्त रहने की। हमें इस पर्व में चारों ओर मानवता के दीप जलाने मानवता फैलाने की आवश्यकता है। दीपोत्सव में मिठाईयों की मिठास समाज से कटुता के मिटाने व समाज में मधुर रस फैलाने की सीख भी दे जाते हैं । दीपोत्सव में धनतेरस पर लोग बर्तनों, आभूषणों आदि की खूब खरीददारी करते हैं तो लक्ष्मी पूजा पर माता लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती है। और सुख समृद्धि संपन्नता खुशहाली की कामना भी की जाती है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्द्धन पूजा का अपना विशेष महत्व है । गोवर्द्धन पूजा को समाज में समानता का प्रतिक माना जाता है । इस अवसर पर लोगों द्वारा गौ माता की पूजा अर्चना करके सुख समृद्धि की कामना की जाती है।देखा जाय तो हमारी समृद्धि खुशहाली में पशुधन का भी विशेष महत्व है और कृषि और पशुधन और मानव का सदैव ही अटूट संबंध रहा है। गोवर्द्धन पूजा के दिन ही भगवान कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्द्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया था और इंद्र के क्रोध से सभी ग्रामीणों की रक्षा की थी,और इंद्र का अंहकार चूर चूर कर दिया था। देवभूमि उत्तराखंड हो या हमारी भारतभूमि परंपराओं का संगम सदैव ही गांवों में देखने को मिलता है।इस अवसर पर गांवों में गोबर से पर्वत बनाकर कुलदेवता की पूजा अर्चना की जाती है। विभिन्न पकवान तैयार किये जाते हैं । गोवर्द्धन पूजा के अवसर पर गौ माता के पांव धोकर उन्हें टीका लगाने के बाद फूलो की माला भी पहनाई जाती है। देवभूमि की गांवों की परंपरा के अनुसार बिस्वार घोल कर गाय की पीठ पर हाथ के पंजो और माणे (माप की घरेलू ईकाई जिससे की अनाज का लेन देन किया जाता है ) से छाप लगाई जाती है । गौशाले में ही गाय के गोबर से गोवर्द्धन पवर्त बनाकर गाय और इसकी पूजा की जाती है । सुबह से ही कुलदेवता की पूजा की जाती है, विभिन्न पकवान तैयार किये जाते हैं इस अवसर पर गौ संरक्षण का संकल्प भी लिया जाता है । ये परंपराऐं बड़ी ही आस्था व धूमधाम से गांवो में मनाई जाती हैं ।

भैयादूज पर बनाये जाते हैं च्यूड़े

दीपावली पर भैया दूज का त्यौहार भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । भैया दूज पर बहनें अपने भाईयों को टीका अक्षत करने के बाद च्यूड़े सिर में रखकर उनके दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना करती हैं । भैया दूज पर परंपराओं को संजोने वाले गांवों में च्यूड़े का बड़ा महत्व है । अधिकांश गांवों में च्यूड़े तैयार करते समय सामूहिकता देखनी को मिलती है जो मातृशक्ति की एकता को प्रदर्शित करती है। च्यूडें तैयार करने के लिए पहले ही धान को भिगोने के लिए रखा जाता है फिर इन्हें कई बार ओखली में कूटने पर तैयार होते हैं च्यूड़े। इन भिगे हुऐ धानों को पहले एक बर्तन में भूना जाता है और भूने हुए धानों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ओखल में डाला जाता है। कूटने के बाद इनसे चिपके हुए और स्वादिष्ट चावल (च्यूड़े) निकलते हैं। इन च्यूड़ों से ही भैयादूज के दिन बहनें अपने भाइयों की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। इन च्यूड़ो को तैयार करने में ओखल मूसल का उपयोग किया जाता इसके लिए सर्वप्रथम ओखल की साफ सफाई लिपाई आदि कार्य को अच्छी प्रकार से निबटा लिया जाता है। आजकल भले ही मशीनीकरण ने पाँव पसार लिये हों किन्तु गाँवों में आज भी महिलाओं द्वारा ओखल मूसल का उपयोग अन्न कूटने में किया जाता है। आजकल भले ही बाजारों में मशीन से तैयार च्यूड़े मिल जाते हैं, लेकिन वास्तव में ओखल में तैयार च्यूड़े पवित्र माने जाते हैं और ये खाने में भी अत्यधिक स्वादिष्ट होते हैं। ओखल में तैयार च्यूड़े लंबे समय तक घर पर रखे जाएं तो खराब नहीं होते हैं। देवभूमि उत्तराखंड के गाँवों से घरों से बाहर रहने वालों के लिए भी च्यूड़े भेजे जाते हैं जो देवभूमि मातृभूमि से सदा उन्हें जोड़े रखते हैं। ये बहुत पौष्टिक भी होते हैं। कुछ स्थानों पर चावल को भिगोकर तिल के साथ पकाकर च्यूड़े तैयार किये जाते हैं ये पके च्यूड़े कहलाते हैं।च्यूड़े दो प्रकार के होते हैं एक पके हुए और दूसरा ओखल में कूटकर तैयार किये हुए। देवभूमि के गाँवों क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार के च्यूड़े तैयार किये जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में पके हुए च्यूड़ो का प्रचलन है तो कुछ क्षेत्रों में ओखल से तैयार किये हुए च्यूड़ो का। अपने अपने गांवों क्षेत्रों में पूर्व में प्रचलित च्यूड़े बनाने की परंपरा प्रथा को अपनाकर उसी के अनुसार आज भी च्यूड़े तैयार किये जाते हैं। गांवों में भैया दूज के त्यौहार को च्यूड़ा पर्व के रूप में भी जाना जाता है । इस दिन नई दुल्हनें ,नव दंपंति अपने मायके में जाकर च्यूड़ा पर्व मनाते हैं । बने हुये च्यूड़ो को आसपास में बांटा जाता है जो समाज में एकता व अखण्डता को दर्शाती हैं । भारतभूमि के हर त्यौहार कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य देते हैं परंपराऐं कुछ न कुछ अवश्य सिखलाती हैं इन्हें आज संरक्षित किये हुये हैं देवभूमि व भारतभूमि के गांव । परंपराऐं तभी संरक्षित होंगी जब संरक्षित होंगे गांव । हर मन में मानवता का उदय हो और सभी जनमानस ईश्वर से वैश्विक महामारी कोरोना से जल्दी से जल्दी मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहे हैं। शीघ्र ही इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से सभी जनमानस को मुक्ति मिल जायेगी और पूरे विश्व में पुनः खुशहाली आ जाये ,सभी जनमानस इसकी कामना भी कर रहे हैं।

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