पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर अपने गांव पहुंचने को लेकर मजदूरों की जो विवशता है , दिल्ली से निकलते हुए मजदूर जो कह रहे हैं .
” हरगिज़ नहीं रहेंगे दिल्ली में, पैदल ही गांव पहुंच जाएंगे वहां चाहे गेहूं की बाली काटें या झाड़ी गुजर बसर हो जाएगी, चटनी से रोटी खा लेंगे गांव में छत भी मिल जाएगी दिल्लीअब हरगिज नही “

यह कोरोना के संकट में शहरों से गांव लौट रहे एक आम हिंदुस्तानी का भले ही दर्द में उपजा कथन हो लेकिन यह कथन अनजाने ही पोस्ट कोरोना अर्थव्यवस्था की तस्वीर बता रहा है . करोना की जो भयावहता दिख रही है उससे आगामी छह माह तक दुनिया सामान्य होती नहीं दिख रही इस महामारी का सबसे अधिक खतरा मानव जीवन को तो है ही लेकिन उससे बड़ा और स्थाई खतरा अर्थव्यवस्था पर पडेगा

पडताल
आज विश्व अर्थव्यवस्था मे जो सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिशत है. वह कृषि 6.4 प्रतिशत उद्योग 30% और सेवा का क्षेत्र 63.6% है. इस महामारी के प्रारंभिक चरण में ही सर्विस सेक्टर जिसके अंतर्गत होटल, हवाई सेवा, मनोरंजन के साधन, हेल्थ क्लब पार्लर आदि आते हैं. तेजी से तबाही की ओर बढ़ रहा है यानी विश्व आर्थिकी का दो तिहाई जिस सेवा क्षेत्र से आता है वह लंबे समय के लिए खतरे में पढने जा रहा है .

इसके बाद उद्योग जो 30% विश्व अर्थव्यवस्था का आधार है वह भी 40% प्रभावित होने की जद में है ।
यानी कुल मिलाकर विश्व को सहारा देने के लिए मौजूदा अर्थव्यवस्था का चौथाई आकार ही पहली नजर में उपलब्धहो रहा होगा . आर्थिकी के क्षेत्र में आ रहे इस संकट का आज हम अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं . कोरोना का सबसे अधिक संकट जिन देशों में है उनमें चीन ,अमेरिका यूरोपीय यूनियन जैसे देश जो इस महामारी से भी सर्वाधिक प्रभावित हैं ,उन्हीं देशों की अर्थव्यवस्था का आकार भी इस वैश्विक आर्थिक महामंदी से सर्वाधिक प्रभावित होने जा रहा है . यह दोहरी मार होगी

अमेरिका जिसकी अर्थव्यवस्था 22 ट्रिलियन डॉलर की है . जिसमें सर्विस सेक्टर 80 प्रतिशत और उद्योग 19% का योगदान देता है वहां कृषि मात्र 1% है इस प्रकार इस कोरोना के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था 90% संकट में आएगी ,जबकि चीन जो लगभग 14 .3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था है . चीन में सेवा सेक्टर 52% उद्योग 40% और कृषि का योगदान 8% है लेकिन चीन की कृषि में विश्व खाद्यान्न का लगभग 20% उत्पादन होता है .
वहीं यूरोपीय यूनियन जो कि पूरे यूरोप का प्रतिनिधित्व करता है यहां लगभग 71% सेवा क्षेत्र 26% उद्योग और 2% के आसपास कृषि का योगदान है . इटली स्पेन जैसे देश जिसके भाग हैं वहां भी हालात बदतर होने वाले हैं.
दुनिया की ऐसी अर्थव्यवस्थाएं जो पूरी तरह सेवा क्षेत्र और उद्योग पर निर्भर हैं. जिनमें मुख्य रूप से सिंगापुर ,मकाउ आता है. जहां अर्थव्यवस्था सिर्फ सेवा और उद्योग क्षेत्र पर केंद्रित हैं वहां क्या होगा कल्पना नही की जा सकती है . जिन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित नहीं है वह करोना के बाद बेहद आर्थिक संकट में होंगे.

इस दृष्टि से अफ्रीकी देश जहां आज भी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 40% है मजबूती से खड़े रहेंगे . पाकिस्तान जो 24% कृषि पर निर्भर है वह भी तेजी से इस संकट से निकल पाएगा और भारत के लिए जिसकी आधी से अधिक आबादी असंगठित क्षेत्र के मजदूर के रूप में कार्य करती हो जो कृषि और श्रम का मिश्रण हो ,जिसकी जीडीपी में इस श्रम का 57% योगदान निकल कर आता है वह अपने आप को बचा ले जाएगा यह उम्मीद की जा सकती है .हालांकि आज भारत के अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगातार कम हो रहा है हम जब आजाद हुए तो हमारी अर्थव्यवस्था में 52 प्रतिशत कृषि का योगदान था तब उद्योग 15.5 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र सिर्फ़ 32.5% का योगदान कर रहे थे .आजादी के बाद हमने विकास का जो रास्ता तय किया,उससे खेत खलिहान से हमारी दूरी बढ़ी. हर दशक में कृषि का योगदान 5% अर्थव्यवस्था में कम होता रहा .

देश में बाजारीकरण के साल 1990 के बाद कृषि का योगदान तेजी से घटा 1990 में जहां हम 30% कृषि पर निर्भर थे वहीं पिछले 30 वर्षों में यह निर्भरता आधी हो गई यानी अब हम 15% से कम कृषि पर निर्भर हैं गांव खेत खलिहान नई अर्थनीति में हासिए में जाते रहे .यहां यह उल्लेखनीय है कि 2008 की मंदी के वक्त भी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के कारण हम उभर गए थे . आज भी हमारे गांव ,खेत खलिहान हमें यह भरोसा दिलाते हैं कि हम इस विश्वव्यापी महामारी से उपजे आर्थिक संकट का सामना कर पाएंगे और भविष्य में अपनी आर्थिकी का आधार ऐसा रखेंगे कि हम कृषि विमुख राष्ट्र न हो …. हमें मन से जय जवान, जय किसान का नारा अपनाना होगा . देश में फैल रहे छद्म उद्योगपतियों (क्रोनी कैपटलिस्ट )के षड्यंत्र को रोकना होगा.
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