क्यों शहर में आज सन्नाटा है,
घर मे दुबके है लोग किस डर से,
परिंदे भी बाहर, खुले आम घूम रहे है,
क्या किया इंसानी जमात ने जो,
खुद ही इंसान से भाग रहे है,
खुद को खुदा कहने वाले,
अब चला पता कि तू क्या है?
चांद पर जाकर ख्वाब देखने वाले,
आज घर में ही, क्यों दुबका है?
देखो शान से, परिंदे चुग रहे हैं दाना,
खता नही की थी उन्होंने कभी,
पर तुम उनकी तरह, चाहते थे उड़ना,
आज तेरे आंगन में, वो आजाद रहे घूम,
घर की दीवारों के भीतर खुद को बचाने वाले,
आज कहां गया तेरा अहंकार, उड़कर आसमान छूने वाले,
यह वक्त है, वक्त का, अगर अभी न समझा तू
आंगन में परिंदे घूमेंगे और घर में रहेगा तू…..
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