साहित्य और व्यंग्य लेखन पर परिचर्चा, ‘चाकरी चतुरंग’ पहाड़ की बिच्छू घास की तरह है….

खबर शेयर करें -

Haldwani News- एमबीपीजी के हिंदी विभाग में आधुनिक हिन्दी साहित्य और व्यंग्य लेखन विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में वाराणसी के वरिष्ठ कवि व आलोचक डॉ. रामप्रकाश कुशवाहा ने विद्यार्थियों को ऑनलाइन सम्बोधित करते हुए कहा कि व्यंग्य मेरी दृष्टि में भाषा का वक्रोक्तिधर्मी प्रयोग है और प्रायः यह वाक्य के स्तर पर नहीं बल्कि ध्वन्यर्थक यानी आधुनिक शब्दावली में कहें तो प्रयोक्ता के आशय में निहित होने के कारण मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रकृति की होती है। एक विधा के रूप में यह निबन्ध, कथा और कविता तीनों के अन्तर्गत हो सकती है। रस दृष्टि से यह हास्य और निन्दा दोनों की व्यंजना कर सकती है लेकिन व्यंग्य की सफलता बुरा या कटु न लगने देते हुए बुरा या कटु सुनाने या कहने में है। यह सामाजिक सुधार और परिवर्तन की दृष्टि से क्रान्तिकारी महत्व की विधा है।

हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ. सन्तोष मिश्र ने उत्तराखंड में व्यंग्य लेखन विषय पर बोलते हुए व्यंग्य विधा की नवीनतम कृति चाकरी चतुरंग पर चर्चा की। डॉ. मिश्र ने कहा कि ललित मोहन रयाल की रचना चाकरी चतुरंग पहाड़ की बिच्छू घास की तरह है, जिसमें मारक और सुधारक दोनों गुणों का समावेश होता है। आम आदमी का जिस सरकारी सिस्टम से गाहे-ब-गाहे पाला पड़ता है, जिन कार्यालयों के मुँह देखने पर कई बार दुःख के अलावा कुछ भी नहीं उपजता है। उन सभी की ओढ़ी हुई शालीन चादर को खींचकर अन्दर की चतुर-चालाकी, उसके काइयाँपन को एक अलग अंदाज में उघाड़ता है यह व्यंग्य उपन्यास। चूँकि लेखक ललित मोहन रयाल खुद सरकारी अफसर हैं, इसलिए उन्होंने कोरी गप्प मारने के बजाय कबीर की आँखिन देखी वाली शैली अपनायी है। कार्यक्रम का संचालन प्रीति जोशी ने किया। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के प्राध्यापकों के साथ-साथ रवि, हिमानी, भूमि, सौरभ, गुंजन, शिफा आदि शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।

अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें

Subscribe
Notify of

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments