यात्रा वृत्तांत (तृतीय भाग) उत्तराखंड के कपकोट विधानसभा के कलाग ग्रामसभा की दर्द भरी कहनी.

खबर शेयर करें -

हम चिंणाग गांव होते हुवे आगे बढ़ने लगे , उसी गांव के एक बुजुर्ग से मैने अपने गांव का रास्ता पूछा तो उन्होंने सामने की एक बड़ी पहाड़ी की ओर इशारा करते हुवे कहा कि इस रास्ते जाओ ,, मेने पहाड़ी देखी तो माथे पर बल पड़ गये क्यों कि उस पहाड़ी के आस पास की किसी भी पहाड़ी में दूर दूर तक कोई घर नही दिखाई दिया , मेरी भूली बिसरी यादों में मुझे ये तो पता था कि मुझे घर तक पहुचने में पहाड़ की काफी खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है , लेकिन मेरे सामने की पहाड़ी देख मुझे एहसास हो गया कि वो भूली बिसरी यादे ही थी क्योंकि असल मे सामने की पहाड़ी देखते ही हमारी सांसे फूलने लगी थी ,

फ़ोटो… दिनेश पांडेय

और इससे भी बड़ा रहस्य ये था कि क्या इस पहाड़ी बाद मेंर गॉव आ जयेगा या ओर दूसरी पहाड़ी एवरेस्ट समझ के चढ़नी पड़ेगी ,, फिलहाल हम धीरे धीरे पहाड़ के घरों के बीचों से चलने लगे ,, इस दौरान मेरे मन मे एक सवाल कौंधा कि लोगो के घरों के आंगन से जाने वाले रास्तो को भविष्य में यदि किसी ने बन्द कर दिया तो हम गॉव कैसे जाएंगे ,, लेकिन हमारी सांस्कृतिक विरासत, मेलजोल भाव से रहने की संस्कृति मेरे सवाल को काल्पनिक दर्शा रही थी क्योंकि सदियो से पहाड़ो में मेरे पूर्वज , एक बखाई (यानी बड़ा घर जिसमे दो तीन घर जुड़े हो ) सयुक्त रूप से रहते थे , और यही परम्परा पहाड़ में सभी जगह आज भी चली आ रही है ,

फ़ोटो.. दिनेश पांडेय

मेने लोगो के घरों के आकार को देखा तो उनकी बनावट सदियो पुरानी और हाथ की कारीगरी का एक सुंदर नमूना थी, खास कर (द्वार) दरवाजे ओर (छाज}खिड़कियां हर घर के आंगन में एक ओखली का होना मानो जैसे अनिवार्य था, हालांकि आज घट ओर घराट को छोड़ धान, गेंहू या मडुवा पिसाई बिजली की चक्की का इस्तेमाल करते है (लेकिन एक दशक पहले तक ये सब काम पहाड़ो में नदी किनारे बने छोटे छोटे घरॉटो में किया जाता था जहाँ पानी के वेग का बैज्ञानिक इस्तेमाल कर अनाज की पिसाई की जाती थी) लेकिन पहाड़ में बने ये (उखोव) ओखली साल में दीपावली के अगले दिन जरूर काम आती है क्यों कि दीपावली के अगले दिन यमदुतिया पर पहाड़ में अपने इष्टदेव को च्यूड (धान भीगा कर उसे कड़ाई में भुटने के बाद ओखली में कूटने के दौरान निकलने वाला पिचका हुवे चावल) चढ़ाने की परम्परा है, इस दिन इस ओखली का हर घर मे भरपूर इस्तेमाल होता है ,इस सब दृश्यों को देखते हुवे हम आगे बढे ,

यह भी पढ़ें 👉  देहरादून -(बड़ी खबर) प्रधानाचार्य भर्ती परीक्षा अपडेट
फ़ोटो.. दिनेश पांडेय

आधा घंटा चलते चलते अब गांव के घर और खेत खत्म हो गए अब उस पहाड़ी के निचले हिस्से में थे जिसे मुझे गांव वालों ने कलाग गांव जाने का रास्ता बताया था , हम गांव के आखरी छोर में बने एक बरसाती गधेरे (नहर) से ऊपर की और चढ़ाई चढ़ने लगे, मुश्किल से डेढ़ फीट चौड़े रास्ते मे हम खड़ी चढ़ाई चढ़ रहे थे , मन मे सालो बाद घर पहुँचने की बड़ी उत्सुकता तो थी लेकिन खड़ी चढ़ाई हमारे हौसले की परीक्षा ले रही थी, कहते है गर्मी के मौसम में भी 6000 फीट से ऊंची पहाड़ियों पर ठंडी हवा चलती है लेकिन यहां बिल्कुल विपरीत वातावरण था

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी - हल्दुचौड़ व्यापार मंडल चुनाव के लिए सह चुनाव प्रभारी की घोषणा
फोटो..मनोज

पसीने से तरबतर होकर हम खड़ी चढ़ाई चढ़ रहे थे अपनी यात्रा शुरू करने के 1 घंटे उपरांत हमने उस पहाड़ी को पार किया तो सामने दूसरी पहाड़ी दिखाई दी लेकिन हम थक के चूर हो चुके थे मेरा भाई जो मेरे साथ इस खड़ी चढ़ाई में हिम्मत बांधे चल रहा था अब वह भी बुरी तरह थक चुका था और पसीने से तरबतर था उसके पास 2 लीटर की एक चिल्ड कोल्ड्रिंग और दो लेज के पैकेट से जो अब उसे मानो किसी बड़े बोरे के वजन से कम नहीं लग रहे थे आखिरकार मनोज बोल ही पड़ा अब सही समय है कि चिल्ड कोल्ड्रिंग पीकर गला तर करना चाहिए ,,,,,,, क्रमशः

यह भी पढ़ें 👉  नैनीताल -(बड़ी खबर) DM हुई सख्त, अतिक्रमण हटाने के निर्देश
फ़ोटो दिनेश पाण्डेय
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें

Subscribe
Notify of

1 Comment
Inline Feedbacks
View all comments