यादें: ये आकाशवाणी का अल्मोड़ा केन्द्र है, अब आप लोकगायक हीरा सिंह राणा का सुनिए ये गीत…

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जिनके गीतों को सुनकर मेरा बचपन बीता। रंगीली बिंदी घाघरी काई, ओ धोती लाल किनार वाई गीत रेडियो पर बजते ही हम झूम उठते थे। क्या दिन थे ओ भी। शाम को आकाशवाणी अल्मोड़ा से रमोल, भगनौल और फिर विख्यात लोकगायक जनकवि हीरा सिंह राणा जी के गीत। वैसे मेरा संगीत से जुड़ाव बचपन से ही था। जब से होश संभाला तो संगीत ही सुना। मेरे पिता जी संगीत के बड़े दीवाने है। आज भी वह पहाड़ी गीतों को सुनना पसंद करते है। हमारे घर में रेडियों के साथ-साथ एक टेपरिकॉडर भी हुआ करता था।

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HEERA SINGH RANA

मुझे थोड़ी याद है। थोड़ा होश संभालना शुरू किया था। हमारे घर में सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी जी, सुप्रसिद्ध लोकगायक मदन राम जी और लोकगायक हीरा सिंह राणा जी के कैसेट हुआ करते थे। मुझे याद है 90 का वो दौर, जहां शाम को रेडियो ऑन करते ही लोकगायक हीरा सिंह राणा जी के गीत बजने शुरू हो जाते थे। उस दौर में किसी के पास रेडियो होना बहुत बड़ी बात थी। गांव के और लोग भी दूसरे का रेडियो सुनकर अपने काम किया करते थे।

बचपन से जिनके गीतों को सुनकर बड़ा हुआ। आज सुबह जब सोशल मीडिया पर उनके निधन की खबर सुनीं तो मन में कई सवाल उठे। इंसान तो चले जाता है लेकिन उसकी अच्छाई कभी नहीं जाती है। आज लोकगायक हीरा सिंह राणा जी हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके गीत सदा अमर रहेंगे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन हो या फिर अन्य जन आंदोलन हमेशा हीरा सिंह राणा जी ने आवाज उठाई। कैसेट संगीत के युग में हीरा सिंह राणा ने अपने लोक गीतों जैसे- रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना गीतों से लोगों का दिल जीता। उनके दो गीत जो मुझे बहुत पसंद है रंगीली बिंदी घाघरी काई, ओ धोती लाल किनार वाई और आजकलै हेरे ज्वाना मेरी न्यौली पराणा। ये गीत सदा मेरे कानों में गंूजते रहेंगे। अपनी सुरीली आवाज से उन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की।

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आज उनके निधन पर मन दुखी है। दिमाग में वही रेडियो की आवाज सुनाई देती है। ये आकाशवाणी का अल्मोड़ा केन्द्र है। रंगीली बिंदी घाघरी काई, ओ धोती लाल किनार वाई…
कुमाऊं लोक संस्कृति के लोकगायक जनकवि हीरा सिंह राणा जी को भावपूर्ण श्रद्धाजंलि
पत्रकार जीवन राज,हल्द्वानी की फेसबुक वॉल से

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