GANGA DASHHARA

पहाड़ में गंगा दशहरा की अनूठी परम्परा

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उत्तराखंड में गंगा दशहरा का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है खासकर गंगा दशहरा के दिन लोग घरों के दरवाजे और चौखट पर गंगा दशहरा द्वार पत्र लगाते हैं और दरवाजों के इर्द गिर्द गोबर से जौ के पेड़ थोपते (चिपकाते) हैं माना जाता है कि ऐसा करने से घरों को किसी प्रकार का अग्नि, बज्र आदि का भय नहीं रहता। खासकर कुमाऊ में लोग इस त्यौहार को बेहद उत्साह से मनाते हैं गंगा दशहरा से एक-दो दिन पूर्व पारिवारिक पुरोहित अपने सभी जजमान के घर जाकर उन्हें गंगा दशहरा द्वार पत्र भेंट करते हैं जिसे आज के दिन लोग अपने दरवाजों पर लगाकर इस त्योहार को मनाते हैं। (देई) और गोबर और लाल माट से लिपटे है. फ़िर ऐपन दिए जाते है. घर के दरवाजों पर और मन्दिर में दशहरा पत्र (द्वार पत्र, दशौर ) चिपकाए जाते है. ये द्वार पत्र पुरोहित लोगो के द्वारा यजमानो को दिए जाते हैं जिसे यजमान अपने दरवाजे पर लगाते हैं इस इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है. वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी. इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते है Ganga Dussehra’s unique tradition in UTTARAKHAND

संकट में हिमालय और घरती पर प्रकट हुई गंगा

गंगा दशहरा, गंगा दशहरे का महत्व हिन्दू रीति रिवाजों में विशेष महत्व रखता है, बात देवभूमि उत्तराखंड की करे तो गंगा दशहरा के दिन माँ गंगा में स्नान करने और पूरे विश्व की मंगलकामना की जाती है, माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान राम के पूर्वज भगीरथ जी की तपस्या से प्रसन्न हो कर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। यानी माँ गंगा का अवतार दिवस जिसे सनातन धर्म में विशेष श्रेणी में रखने के साथ पावन गंगा को माँ का दर्जा दिया गया, क्योंकि माँ और गंगा के व्यवहार में सरलता, अबिलरता समेत अनेक समानता होती है।
कुमाऊं में गंगा दशहरा एक विशेष पर्व है जहां इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस दिन पर घरों में गंगा द्वार पत्र लगाकर पूजन करने की परंपरा है पूर्व काल में ये भोज पत्र में बनाऐ जाते थे भोज पत्र अत्यंत उपयोगी और औषधीय गुण वाला वृक्ष है, जिसकी छाल से भोज पत्र बनाये जाते थे। द्वार पत्र पर अगस्त आदि पांच मुनियों के नामों का मंत्र लिखा होता है। Ganga Dussehra’s unique tradition in UTTARAKHAND

गंगा दशहरा मंत्र-

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च।
जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्र वारकाः।।
मुने कल्याण मित्रस्य जैमिनेश्चानु कीर्तनात।

विद्युदग्निभयंनास्ति लिखिते च गृहोदरे।।
यत्रानुपायी भगवान् हृदयास्ते हरिरीश्वरः।
भंगो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा।।


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