प्रकाश पंत : आसमान में चमकता पहाड़ का एक सितारा

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बात 2019 के होली से कुछ दिन पहले की है तब तत्कालीन वित्त मंत्री प्रकाश पंत हल्द्वानी के तीन पानी स्थित अपने आवास पर पहुंचे थे, एक इंटरव्यू के दौरान हम उनके घर पहुंचे इस दौरान बहुत सारी अनऑफिशियल बातें भी हुई और उन्होंने अपने जीवन के कई किस्से भी हमारे साथ साझा किए जिसमें एक किस्सा पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की शालीनता पूर्वक विपक्ष के साथ सहयोग पूर्ण व्यवहार का था। उन्होंने बताया कि एक बार स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से सदन में कुछ तीखे सवाल उनके द्वारा पूछे गए थे लिहाजा उसी दिन शाम को तिवारी जी का फोन उनके पास आया और मिलने का आग्रह किया, जब वह तिवारी जी के मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो स्वयं गेट पर मुख्यमंत्री तिवारी उन्हें रिसीव करने के लिए खड़े थे और बहुत सारी वार्ता के बाद जब उन्होंने वापसी की तो उन्हें गेट तक छोड़ने के लिए आए, यह शालीनता और सम्मान का उदाहरण था कि पंडित नारायण दत्त तिवारी जैसी शख्सियत कद्दावर राजनेता भी कैसे सम्मान से विपक्ष का मन जीतते हैं और राजनीति में यह शालीनता और सहजता धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

हमारी इस वार्ता के कुछ दिन बाद ही हमें जानकारी मिली कि वित्त मंत्री प्रकाश पंत किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं उनका वह हंसता हुआ चेहरा और मुस्कुराते हुए शालीनता से सबकी बातें सुनने की धैर्य क्षमता वाकई किसी और राजनेता में कभी देखने को नहीं मिली, और आज ही के दिन 1 साल पहले उन्होंने हम सब को अलविदा कह दिया। स्वर्गीय प्रकाश पंत आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा उत्तराखंड की राजनीति में स्थापित किए गए आयाम आज भी हर जगह महसूस किए जा सकते हैं। जगह-जगह चर्चाओं के बीच हमेशा उनके शालीन व्यवहार और धैर्यवान राजनेता की छवि लोगों के दिलों में हमेशा कायम रहेगी। स्वर्गीय प्रकाश पंत ने अपने संघर्ष का जीवन बतौर एक फार्मेसिस्ट से शुरू किया था और अभी उन्हें बहुत आगे जाना था लेकिन संघर्ष के अध्याय को एक मुकाम पर छोड़ कर वह हमें अलविदा करके चले गए, उत्तराखंड की राजनीति में स्वर्गीय प्रकाश पंत, एक अपूरणीय क्षति महसूस कराते रहेंगे।

11 नवंबर 1960 को पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में जन्मे प्रकाश पंत बेहद सामान्य परिवार से थे अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद द्वाराहाट से उन्होंने फार्मेसी की पढ़ाई की और फार्मासिस्ट के तौर पर लगभग 4 साल तक सरकारी नौकरी भी की इस दौरान बचपन से ही लोगों की मदद करने और सेवा भाव की झलक उन्हें गरीब और जरूरतमंद की मदद करने के लिए प्रेरित करती रही, लोग बताते हैं कि उस दौर में पिथौरागढ़ मैं उनके फार्मेसी क्लीनिक मैं जितनी भीड़ लगती थी उतनी शायद ही शहर के किसी और डॉक्टर के पास लगती हो। यहीं से शुरू हुआ स्वर्गीय प्रकाश पंत के जीवन का सेवा संघर्ष का समय उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी के दौरान कर्मचारी यूनियन से जुड़कर कई आंदोलन किए, जिसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल के पास पंत फार्मेसी के नाम से दवाई की दुकान शुरू की और यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की अपने गृह क्षेत्र खड़कोट से पिथौरागढ़ नगर पालिका के सदस्य बनकर उन्होंने राजनीति में कदम रखा और उत्तर प्रदेश विधान परिषद में अपने राजनीतिक कौशल और सेवा भाव के कारण ही बहुत कम उम्र में विधान परिषद के सदस्य बने। इसके अलावा 9 नवंबर 2000 को राज्य स्थापना के बाद उत्तराखंड में पहले विधानसभा अध्यक्ष के रूप में प्रकाश पंत ने उत्तराखंड के सबसे युवा विधानसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया इस दौरान उन्होंने राज्य हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए 2002 से 07 तक वह पिथौरागढ़ से विधायक चुने गए 2007 से 2012 तक निशंक और खंडूरी कैबिनेट में प्रमुख मंत्री के रूप में राज्य की सेवा करते रहे और 2017 में फिर उन्हें पिथौरागढ़ की जनता ने अपनी सेवा के लिए चुना और इस बार वह मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए 2019 के मार्च के महीने मैं उनके स्वास्थ्य में खराबी आई इस दौरान जब उन्होंने चेकअप कराया तो उन्हें गंभीर बीमारी से ग्रसित पाया गया, लेकिन वह इस बीमारी से संघर्ष करते हुए भी प्रदेश की जनता के लिए अहम निर्णय लेते रहे यहां तक कि जब वह जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से दिल्ली अस्पताल की ओर एयर एंबुलेंस से जा रहे थे वहां भी उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में साइन किया। और गंभीर बीमारी के चलते 5 जून 2019 को को राजनीति का वह सितारा हमें छोड़कर आसमान में सितारों के साथ चला गया।

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मुझे आज भी याद है क्यों उनके सरकारी आवास हो या घर हर जगह एक स्लोगन वह अवश्य लिखाते थे कि ‘मेरे सामने मेरी प्रशंसा और दूसरों की आलोचना न करें’ स्वर्गीय प्रकाश पंत का राजनीति के अलावा एक और परिचय था जो साहित्यिक दुनिया में भी जाना जाता था बचपन से कविताएं और साहित्य लिखने के धनी प्रकाश पंत ने काव्य संग्रह और पुस्तक भी लिखी एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने बताया कि उनकी जो पहली कविता थी उन्होंने चांद की उपमा के बारे में लिखा था और वह कविता तब की थी जब वह कॉलेज के दिनों में थे अपने राजनीतिक जीवन में भी जब भी वह इधर-उधर सफर करते तो उनके साथ अपने कपड़ों के साथ किसी ने किसी लेखक की उम्दा किताब जरूर रहती थी वह खाली समय में या ट्रेन में चलते हुए साहित्यिक रचनाओं को पढ़ते थे। एक स्वच्छ और बेदाग छवि के मर्म सील राजनेता को उनकी पुण्यतिथि पर मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि

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