'मानवता दैण हैजे'

कुमाऊँनी रचना ‘मानवता दैण हैजे’

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सबूंक आब बिगड़ी काम हैजो,
भारतक सारे दुणीं में नाम हैजो।
कथैं निं हो आब अत्याचार ,
खुशहाली सबूंक ऐजो घर द्वार।
मानवता खूब तू दैण हैजे,
सबूंक मन में पैलिं ऐजे।
गौं -घर शहर देश विदेश,
मिटजो सब जाग बै राग द्वेष।
नयी सोच नयी उमंग ऐजो,
प्रेम भाव सबूंक संग हैजो।
खुशियोंक भरिं जो भकार,
स्वैणा सबूंक हैंजो साकार।
सब जाग बै मिट जो अन्यार,
हैजो मानवताकिं जै जयकार ।
मनूं में पसिं दौकारा दूर न्हैंजे,
भौल बाट हिटणौक साहस दिजे।
मानवता खूब तू दैण हैजे,
सबूंक मन में पैलिं ऐजे।। ..

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