चलो कहीं दूर चलते है , इस झूठी दुनियादारी के बवंडर से बाहर निकलते हैं ।
चलो चलतें हैं वहां , जहां रस्मो, रिवाजों उलझनों, दायरों और सलीकों का कोई मतलब न हो ,
जहां दूर तलक बस एक बेबाक सी हँसी और खुशियों का धरातल हो ।
चलो न इस छोटी सी चाह में , प्यार की पनाह में कहीं दूर चलते हैं

इस मतलबी दुनिया से हम दोनों कहीं बाहर निकलते हैं ।
किसी नदी के किनारे भोर से बैठें रहे हम तुम दोनों ,
पल दो पल नही बस पहरों , हाथ थामें एक दूजे का हम, एक दूजे के कही अनकही बातें सुनें , जो कभी पूरे नहीं होंगे ,, कुछ पल के लिए वो सपने बुनें ।।।।
चलो न इस ख्वाईश में कहीं दूर चलते हैं
इस बेगानी दुनिया से कहीं दूर निकलते हैं ।।
चलो न वहां चलते हैं , जहां मिलन के बाद बिछड़ने का रिवाज़ न हो , जहां आम कोई न हो , बस हर शख्श खास हो ।
जहां आरज़ू , ज़ुस्तज़ु , उदासियों , और तन्हाइयों का मक़ाम न हो ।
जहां हर दिन बस ख़ुशियाँ हो , गमों की कभी भी शाम न हो ।
चलो न कहीं दूर चलते है , इस झूठी दुनियादारी की रस्मों से हम दोनों आज बाहर निकलते हैं ।।
थके हो तुम और मैं भी कहाँ अब पहले सी रही ।।
नाते रिश्ते , ज़िम्मेदारियाँ निभाते – निभाते ,,
हम दोनों की दुनिया जैसे बदल सी गयी ।।।
आप से तुम और तुम से हम तक का ये , हम दोनों का सफर खत्म सा हो गया , मोहब्बत , वफ़ा , इश्क़ , और प्यार चाहे जो कुछ भी कह लो, ये सब बस बातें बन कर खवाबों में ही हमारे रह गया ।।
चलो न आज वक़्त भी है , मज़र भी है और दस्तूर भी है ।।।
प्यार के उस गुलिस्तां में चलते हैं ,, बीते दिनों को याद कर मोहब्वत की लो में एक बार फिर हम दोनों जलते हैं,
चलो इस झूठी दुनियादारी के बवंडरों से हम दोनों कहीं दूर चलते है ।।।।कहीं दूर चलतें हैं ।।। हां बहुत दूर चलते हैं…

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1 thought on “इक अधूरी तृष्णा ….”
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Nice poem