मेघ उमड़ रहे है नील गगन में काले काले…
बरस पड़ो अब धरा पे रिम झिम रिम झिम,
सूखे साखो को फिर से अपनी बूदो से सीच के नव जीवन दे दो,
इस धरा पे अपनी अमृत बूदो से फसलों को आबाद करा दो..
चलो फिर से मायूस चहेरो पे मुस्कान दिला दो,
रिमझिम रिमझिम वर्षा कर के,
फिर से वो बचपन के खेल याद दिला दो…
बागो मे सुने पड़े झूलो को आबाद कर दो,
रंग बिरंगी फूलो की फुलवारी की वो प्यारी सी मुस्कान से धरा पे रंग बरसा दो..
अपनी बूदो से फिर धरा को हरा श्रंगार करा दो।
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