साईकल के बहाने.

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साईकल चलाने के बहाने,
मैं भोर जग जाया करता हूँ ,
ट्रिन-ट्रिन करके, मैं सबको बतलाया करता हूँ ।

दो कदम चल कर, मैं थक सा जाता था,
अब दो पैडल पर, मैं और तेज़ उड़ जाता हूँ।

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कभी लड़खड़ाता, कभी उठता,
कभी मंडली के साथ जाता था,
अब मैं खुद पथ पार कर लिया करता हूँ ।

साईकल चलाने के बहाने,
मैं स्कूल उमंग के साथ जाता हूँ ।
जो उतरे चैन पथ पर कभी,
तो पैडल उल्टा मार लिया करता हूँ।

साईकल चलाने के बहाने ,
मैं कसरत कर लिया करता हूँ।
लू से बचने को ,मैं पैडल ज़ोरो से दौड़ाता हूँ।

सब औझल हो गया आँखों से,
अब मोटर कार से आना,सब लाज समझते हैं ।
सड़क को धुवें से भर कर,
धू-धू करके आना, टशन समझते हैं।

साईकल संग जब आसमां चला करते है,
धू-धा के चक्कर में,उस रस को खो देते हैं ।

रेस में तो साईकल मोटर से हार जाया करती है,
किन्तु साईकल चलाने के बहाने से,
ज़िन्दगी ताल-मेल बनाना सीख जाती है ।

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12 thoughts on “साईकल के बहाने.

  1. बहुत ही सराहनीय कार्य किया है मित्र तुमने??

  2. Chaa gye aap to Rawat G.. humien to maalum hi na tha aapk is hunar k baare m, bht sundar kavita h ..??

Comments are closed.