जानिए, कौन है सीमा कुशवाहा ? जिसने दिलाया निर्भया को इंसाफ..

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सीमा कुशवाहा एक ऐसा नाम जो वकालत जगत में एक ऐसा नाम बन चुका है।जिसे पूरा देश आज अपना सर झुकाकर सलाम कर रहा है।और जिन्हे आज हमारी महिलाएं बेटियां बहन अपना आदर्श मान चुकी हैं।
तो क्यों ना पूरा देश मिलकर इस बेटी के बारे में जाने और अपने आने वाली पीढ़ी को बताए और एक मिसाल दे कि ऐसा भी होता हैं मेरे भारत देश में। और आज भी उन छुपे हुए और पनप रहे आरोपियों को बता दे कि इतना कमजोर नहीं हैं मेरे देश का कानून।

कौन है ये सीमा कुशवाहा ?

सीमा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही लॉ की पढ़ाई की।लेकिन वह सिविल परीक्षा देकर आईएस बनना चाहती थीं। जो कि हुआ नहीं। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था।
क्योंकि वह खुद ऐसी जगह से आती हैं। जहा लड़कियों को ज्यादा आजादी नहीं मिलती। जहा लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता। उसके बावजूद उन्होंने संघर्ष कर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।और उन्हें वकालत की दुनिया में कदम रखना पड़ा।
सीमा को क्या पता था कि तभी उनके सामने एक ऐसी चुनौती आ जाएगी ।जिसका मंजर ही इतना खौपनाक होगा।जो सबके दिलो को दहला देगा।
तभी सीमा के सामने निर्भया का केश आता है ।उन्होंने इस पर बहुत आत्ममंथन किया।
काफी मंथन के बाद उन्होंने निर्भया को न्याय दिलाने की ठान ली ।उन्हे ये भी मालूम था।ये केस में उन्हें कई समस्याएं आयेगी ।लेकिन वो कभी घबराई नहीं । क्योंकि उनके जहन में एक सवाल बार बार आता कि अगर वो इस केस को ना लड़े तो निर्भया को न्याय कैसे मिलेगा। और आरोपी खुले आजाद घूमेंगे ।जो हर बार की तरह एक मजाक बन कर रह जाएगा ।और जिसके लिए उसने वकालत की है ऐसी वकालत करने का क्या फायदा। जो निर्भया को न्याय ही ना दिला पाए।बिना पैसे लिए उन्होंने इस केस को करने का फैसला लिया।
वहीं दूसरी तरह एक ऐसा वकील ए पी सिंह ।जिसमे शायद भावनाओं की कमी थी । जो सब कुछ जानने के बावजूद अपनी चाले चलता रहा ।और सीमा को अपनी चालो में उलझाता नजर आया। जो बड़ी सादगी से इस कुरूप कार्य को अपनी चाल में हर बार उलझा लेता था।और आरोपियों को बचा लेता । ये भी कोई शकुनि मामा से कम नहीं था। खेर इन्हे मामा कहना भी मामा शब्द की अवहेलना होगी । इसलिए आपको जो शब्द अपने मन में आए आप उसे दोहरा सकते है। हर बार की तरह देश के सामने एक नई महाभारत खड़ी कर देना ।जैसा इस शकुनि का मकसद बन गया था ।
पूरा देश अब थोड़ा थक चुका था।क्योंकि वक्त सालो में तब्दील होता नजर आ रहा था । और कुछ लोगो का संयम भी। वहीं एक सिक्का अपनी धुरी में उछलता और घूम रहा था।जिसके दो पहलू थे एक पहलू जिसमे एक मां थी ।और दूसरी तरफ एक ऐसी नारी जिसे ये विश्वाश था कि सत्य की जीत जरूर होगी।एक मां अपने पथ और अपनी लड़ाई पर अडिग थी । और एक वो मिसाल जिसे खुद पर और पूरे देश की आन बान और विश्वाश पर भरोसा था।

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आइए जानते है कैसे हुई इस काले अध्याय की शुरुवात ?

दिल्ली,16 दिसंबर 2012 की वो काली रात जब लोग कड़ाके की ठंड से रात अपने अपने घरों में सुरक्षित थे तब राजधानी दिल्ली के बसंत विहार इलाके के पास एक चलती हुई प्राइवेट बस में एक पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ 6 दरिंदों ने बड़ी निर्दयता से गैंगरेप कर उसे बीच सड़क पर छोड़ दिया था। अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी। जब यह खबर चारों ओर फैली तो हर कोई सिहर उठा। दिल्ली की तमाम जनता ना केवल महिलाएं बल्कि पुरुष भी दोषियों के खिलाफ कारवाई की मांग लिए सड़कों पर उतर आये और ना जाने कितने कैंडल मार्च हुए। कितने जाम हुए। जिसका असर
हमारी सरकार पर ऐसा पड़ा की उन्हे फास्टट्रैक कोर्ट ट्रैक का गठन करना पड़ा। दिल्ली हाईकोर्ट ने छह महीने के अंदर आरोपियों को फांसी की सज़ा पर मुहर लगा दी थी।लेकिन ऐसा हो ना पाया।
और तभी एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। आरोपियों में एक छोटा नाबालिग भी शामिल था। उसे किशोर न्याय कानून ने दोषी ठहराया और तीन साल के लिए सुधार गृह में रखे जाने के बाद रिहा कर दिया गया ।
उसके बावजूद मामला थम नहीं रहा था ।जनता पूरी तरह से भड़की हुई थी ।
लोगों ने विरोध में दिल्ली की प्रमुख जगहों पर पम्पलेट ले कर सरकार से न्याय की गुहार लगाई। ये पहली बार नहीं हुआ था मेरे इस देश में। लेकिन हर बार जैसा भी नहीं था ।कुछ अलग सा था । एक आंधी की तरह था। जब स्त्री की अस्मिता पर लोगों की आवाज ना सिर्फ देश में गूंजी बल्कि पड़ोसी देशों में भी गूंजी थी।
और तब ये एक अलग ही केस बनकर सामने आया जब पीड़ित लड़की के मां बाप आरोपियों के खिलाफ खुल कर देश के सामने आये और अपनी बेटी के अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा की मांग की।
असर ये हुआ कि पुलिस ने जल्द ही उस प्राइवेट बस को खोज लिया जिसका वारदात में प्रयोग हुआ था। गैंगरेप की इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद लड़कियों को अपने घर से निकलने में डर लगने लगा।
फिर पुलिस ने पांच बालिग अभियुक्तों के खिलाफ हत्या, गैंगरेप आरोपों के तहत चार्जशीट दाखिल की।
इस केस के मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या की। ऐसा माना गया कि आत्मग्लानि के चलते उसने ऐसा किया। लेकिन बाकी आरोपी अब भी बचे हुए थे।
अदालत ने चार आरोपियों को जिनके नाम इस प्रकार थे। मुकेश, विनय, पवन और अक्षय
जिन्हे फांसी की सजा सुनाई गई । ये भी सुनाई दिया कि निर्भया के दोषियों को उसी दिन सजा दी जा सकती है जिस तारीख को उसके साथ घिनौना कृत्य किया गया था।
लेकिन ऐसा ना हो पाया । समय का चक्का अपनी रफ्तार में घूम रहा था।और आरोपियों और निर्भया की जंग अपने विश्वास में अडिग थी।
फिर एक ऐसा दिन आता है ।जब पूरा देश भयभीत होता नजर आता है।पूरा भारत ही नहीं अपितु पूरे मुल्क।
तभी एक देश को एक ऐसा समाचार मिलता है ।जिस कारण अपना भय सबको बहुत छोटा जान पड़ता है। 20 मार्च 2020। आज प्रातः सबकी आंखो में आंसू थे। एक सिकन थी हर चेहरे में वो भाव थे जो देखे जा सकते थे।बहुत करीब से ।क्योंकि ये लेख लिखते हुए मै इतना भावुक हो गया की मेरा गला भर आया तो मेरे भाई बहन इस से कैसे अछूते रह सकते हैं।
लेकिन मै सबको बता दू।ये जंग ये लड़ाई निर्भया का परिवार ही नहीं अपितु पूरा देश लड़ रहा था ।

और आज देखिए सात सालो की जंग आज पूरी थम चुकी हैं।पूरा देश नमस्तक है। निर्भया के सामने और साथ ही उस मां को और साथ ही सीमा कुशवाह को जिन्होंने इतने लंबे समय होने के बावजूद हार नहीं मानी ।
आज की तारीख 20 मार्च 2020 सबको हमेशा याद रहेगी जब मेरे पूरे देश की आंखे भरी हुई हैं। जिसमे भावनाए है।नारी जगत के लिए सम्मान है।
मुझे अभी भी महसूस होता है हर वो व्यक्ति जो इस लेख को पढ़ रहा होगा ।कही कोने में एक बार तो दिल से रोते हुए उसके आंसू की कुछ बूंदे बाहर निकालने को बेकरार होगी ।जिसे मैं यही कहूंगा , रोके ना बह जाने दे ।
कलम को यही विराम देता हूं।?✍?

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