मत घबराओ पतझड़ से , कि पत्तो को आना ही है.

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1

“तुम टिके रहो, हौंसले के साथ .
कि मुसीबत को जाना ही है. .
मत घबराओ पतझड़ से ,
कि पत्तो को आना ही है .”

2

युद्ध का कोई इतिहास नही.
मारे गए शूरवीर सभी ..
प्रभुता के उन्माद ने ,
जना जो दृष्टि दोष
उसकी ही है उपज -युद्ध
प्रतीकों मैं जब गढ़ा गया – युद्ध
अंधेरा घना ,
आसमान गिद्धो से भरा
नथुनो तक भर आई बास
बस यही युद्ध का इतिहास .

3

घर के आंगन में खिल रहे सरसों के फूल
पागल खुले सांड ने जैसे हों ,रौंद डाले..
टूट के बिखर गए सभी फूल ,
मुश्किल से बचे निशान
घर के आंगन में गिरे हैं
टूटी गर्दन कटे पंख लिए – कबूतर !
जो प्रतीक थे शांति के
कबूतर जो करते गुटर गूं
जो गाते थे गीत प्यार के
गीत
सब दब गए युद्ध के उन्माद में
शोर और फूले हुए नथूनो मे
जब दफन हो विवेक
तब पैदा होता है युद्ध !

4

बाप जो कर ना सका
पूरी जरूरत बेटे की .
खेल ,किताब , तितली और पतंग की
बाप जब निरूत्तर हो गया
मासूम सवालो से.
पीछा करते मासूम ,स्वप्नों से
तब तब वह लड गया पडोसी से
छूट गए सब सवाल ,टूट गए स्वप्न
बाप के फूले नथूनों,
फैली आंखो से डर कर ,
बेटे ने खुद ही बुझा लिए
दीपक सभी
सो गया युद्ध के आगोश में ।

लेखक प्रमोद शाह (पुलिस क्षेत्राधिकारी)

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