Uttrakhand बेरीनाग : जनिये महिमा और रहस्य ‘माँ त्रिपुरा सुंदरी’ की..

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आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेरीनाग की भूमि काफी समृद्वशाली है, इस क्षेत्र में स्थित नाग मंदिरों की श्रृंखला सदियों से परम आस्था का केन्द्र है, शिवालय व शक्ति पीठों की अद्भूत अलौकिक विरासत इस भूमि के विराट आध्यात्मिक महत्व को दर्शाती है झर-झर झरते हुए झरनें, कल-कल धुन में नृत्य करती नदियां, नागाधिराज हिमालय की चोटियां, प्रकृति का अनुपम वातारण, सीढ़ीनुमा सुन्दर खेत, दवेदार, बांज, उतीश, काफल बुरांश के मनोहारी वन कदम कदम पर स्थित लोक देवताओं के मंदिर, साधनाओं हेतु गुफाओं की एकान्तता सहित ,आध्यात्मिक महत्व के अनेका नेक स्थल बेरीनाग अर्थात् नाग भूमि की शोभा को पग-पग पर प्रर्दर्शित करती है, इन्हीं तमाम दिव्य स्थलों के बीच बेरीनाग क्षेत्र में स्थित त्रिपुर सुन्दरी मां भगवती का दरबार सदियों से महान् आस्थाओं का केन्द्र है STORY OF TRIPURA DEVI TEMPAL

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राईआगर नामक कस्बे से बेरीनाग जाने वाले मार्ग पर स्थित त्रिपुर सुन्दरी अर्थात् त्रिपुरा देवी के प्रति स्थानीय भक्तों में अगाध श्रद्वा है, मान्यता है, कि देवी के इस दरबार में भक्तों द्वारा मांगी गयी मनौती अवश्य पूर्ण होती, दस महाविद्याओं में एक माता त्रिपुरा देवी के बारे में कहा जाता है, कि जगत के पालन हार भगवान विष्णु ने दस हजार वर्षों तक मां की आराधना कर सुन्दर रुप को वरदान स्वरुप मां से प्राप्त किया इस दरबार में स्थित इनके श्री चक्र को श्री यन्त्र भी कहा जाता है, मान्यता है, कि देवी के इस शक्ति दरबार में इनकी साधना से भक्त जो इच्छा करेगा उसे सहज में ही प्राप्त कर लेगा, ये त्रिपुरा समस्त भुवन में सबसे अधिक सुन्दर है, इनकी पलक कभी नही गिरती है, श्याम वर्ण के रुप में काली व गौरे वर्ण के रुप में राज राजेश्वरी इन्हीं को कहा जाता है, सौन्दर्य, रुप, श्रृगार, विलास, स्वास्थ्य सभी कुछ इनकी कृपा से प्राप्त होती है। ये श्री कुल की विद्या है, इनकी पूजा गुरु मार्ग से की जाती है, ये साधक को पूर्ण समर्थ बनाती है.

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यहां इनकी पूजा के साथ-साथ बाला त्रिपुर सुन्दरी की भी पूजा की जाती है। त्रिपुरा देवी के इस स्थान पर इनकी साधना से साधक की कुण्डलिनी शक्ति खुल जाती है। इन्होंने ही विश्व की रक्षा के लिए बगलामुखी अर्थात् माई पीताम्बरी का रुप धारण किया अपने भक्तों की सभी प्रकार से देखभाल करने वाली दयामयी तथा करुणा रखने वाली त्रिपुरा देवी की महिमा अपरम्पार है।

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उपनिषदों के भीतर त्रिपुरा देवी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है, एक मात्र त्रिपुरा देवी ही सृष्टि से पूर्व थी, उन्होंने ब्रहमाण्ड की सृष्टि की वे कामकला के नाम से बिख्यात है, वे ही श्रृगांरकला कहलाती है, उन्हीं से ब्रहमा उत्पन्न हुए, विष्णु प्रकट हुए, रुद्र प्रादुर्भूत हुए उन्हीं से समस्त मरुद्गण उत्पन्न हुए उन्हीं से गाने वाले गन्धर्व, नाचने वाली अप्सरांए, और बाद्य बजाने वाले किन्नर सब उत्पन हुए सब कुछ शक्ति से ही उत्पन हुआ मनुष्य सहित समस्त प्राणियों की सृष्टि भी उन्हीं से हुई, वे ही अपराशक्ति है, वे ही शाम्भवी विद्या, सहित समस्त विद्याऐं कहलाती है, वे ही रहस्यरुपा है, वे ही प्रणववाच्य अक्षर तत्व है, ऊं अर्थात् सचिदानन्द स्वरुपा है।वे ही वाणी मात्र में प्रतिष्ठित है, वे ही जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति इन तीनों पुरों तथा स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों प्रकार से शरीरों को व्याप्त कर बाहर और भीतर प्रकाश फैला रही है, देश, काल, और वस्तु के भीतर अंसग होकर रहती हुई वे महात्रिपुर सुन्दरी प्रत्येक की चेतना है। सत् चित् और आनन्द रुप लहरों वाली श्री महात्रिपुर सुन्दरी बाहर और भीतर प्रविष्ठ होकर स्वंय अकेली ही विराजमान हो रही है, उनके अस्ति, भाति, और प्रिय इन तीन रुपों में जो अस्ति है वह सन्मात्र का बोधक है, जो भांति है वह चिन्मात्र है, और जो प्रिय है, वह आनन्द है, इस प्रकार सब आकारों में श्री महात्रिपुर सुन्दरी ही विराजमान है। BERINAG TRIPURA DEVI TEMPAL

बेरीनाग के समीप स्थित त्रिपुरा देवी का दरबार युगों-युगों से हिमालयी भूमि में अगाध श्रद्वा के साथ पूज्यनीय है, निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के लोग जब किसी कार्य का शुभारम्भ करते हैं, तो सर्वप्रथम महामाया महात्रिपुर सुन्दरी का स्मरण करते है, जनपद पिथौरागढ़ के राईआगर और बेरीनाग के बीच स्थित यह शक्ति पीठ साधना की दृष्टि से सर्वोतम तीर्थ माना गया है।
इस तीर्थ की महिमां अद्भूत है।स्कंद पुराण में ये नागों की परम आराध्या देवी के रुप में परम पूज्यनीय है।इस बात का पुराणों में उल्लेख करते हुए महर्षि व्यास जी ने कहा है।नाग पर्वत पर विराजमान सभी नागगण माता त्रिपुर सुन्दरी की उपासना कर स्वंय को धन्य करते है।

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मूलनारायण जी ने किस प्रकार माता त्रिपुरादेवी को प्रसन्न कर महावैभवता को प्राप्त किया इसका रोचक वर्णन पुराणों में आता है।मूलनारायण नाग पर्वतों में नाग प्रमुख के रुप में पूजे जाते है।भगवान नारायण की कठोर भक्ति के प्रताप से इन्होनें सर्वपापहारी परमात्मा के नारायण नाम को प्राप्त किया।और मूलनारायण के नाम से ख्याति प्राप्त कर भगवान विष्णु से अजर अमर देह को प्राप्त किया।मूलनारायण की अद्भूत कथा को पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है।बारहाल पूर्व जन्म के तपस्या के प्रताप से इन्होनें भगवान विष्णु की आराधना की राह पकड़ी नागकुल में जन्म लेने के बाद भी अचल भक्ति के चलते भगवान विष्णु ने इन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया।और अपना सर्वपापहारी नारायण नाम वरदान स्वरूप प्रदान किया।जिसके चलते नाग समुदाय में मूलनारायण नागप्रमुख के नाम से पूज्यनीय है। raiangar tripura sundri mandir

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भगवान नारायण की प्रेरणा से अपने आराध्य भगवान विष्णु की आराधनीया माता त्रिपुरसुन्दरी की भी भक्ति करके मूलनारायण जी ने त्रिपुरा देवी की कृपा को प्राप्त किया।इस विषय में महर्षि ब्यास जी का आख्यान पुराणों में प्रसिद्ध है।कहा जाता है,कि मूलनारायण जी की कठोर तपस्या के प्रभाव से त्रिपुरा देवी ने उन्हें दर्शन दिए।और वरदान मांगने को कहा देवी माँ के अलौकिक स्वरुप के दर्शन करके धन्य हो उठे मूलनारायण ने अपने समस्त नागकुल को माता के इस पावन रुप के दर्शन कराने की अभिलाषा से पुनः दर्शन देने का वरदान मांगा तथा निवेदन किया कि आपके दर्शन देने पर मैं नागकुल के साथ आपका पूजन करुंगा।

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देवी माँ त्रिपुर सुन्दरी ने तथास्तु कहकर मूलनारायण को एक गुफा के दर्शन कराये जो दस योजन लम्बी व बारह योजन चौड़ी थी।वह दर्शनीय,सुनसान व ज्योतिरुप स्थल को देखकर उनकी आखें निहाल हो उठी देवी त्रिपुरा ने शेषनाग से सेवित अपनी नगरी भी दिखलाई।मूलनारायण जी ने नागों के साथ माँ त्रिपुर सुन्दरी भगवती का पूजन किया मूलनारायणी नाम से इस क्षेत्र को प्रसिद्व किया।और नागलोग प्रसन्नता पूर्वक नागपुर में रहने लगे माँ त्रिपुरादेवी की अलौकिक आभा का अनुपम रुप मूलनारायणी के पूजन से अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।

इनकी आराधना से ही वानरराज सुग्रीव ने प्रभु श्री राम की कृपा को प्राप्त करके बाली के अधिकार से अपना राज्य प्राप्त किया।इन्हीं नाग पर्वतों में बाली के हनुमान जी के साथ तपस्या का प्रसगं स्कंदपुराण में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है।महादेव प्रिया मूलनारायणी देवी की कृपा से ही सुग्रीव का उद्वार हुआ। स्कंद पुराण के मानस खण्ड़ के ८४वें अध्याय में नरायणी महात्म्य के अन्तर्गत माँ त्रिपुरा सुन्दरी के इस विराट वर्णन को विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है

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कुल मिलाकर बेरीनाग राईआगर गंगोलीहाट मार्ग पर स्थित माता त्रिपुरा देवी का मंदिर बड़ा ही मनोरम व रमणीक है।नवरात्री के अवसर पर यहां पधारने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।क्षेत्रपाल के रुप में बाण देवता की पूजा की जाती है।इन्हें खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
माता त्रिपुरा देवी भगवान महेश्वर की सबसे मनोहर श्रीविग्रहवाली सिद्व देवी है।चर्तुभुज त्रिनेत्र धारिणी माता त्रिपुरा देवी के हाथों में पाश,अकुश,धनुष,और बाण शोभायमान है।श्री विद्या के नाम से पूजित माता त्रिपुरादेवी को ललिता देवी,राजराजेश्वरी,महात्रिपुरसुन्दरी,बालापन्चदशी आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है।तन्त्रशास्त्र में माता को पन्चवक्त्र अर्थात् पंचानन की अर्धागिनी पॉच मुख वाली देवी के रुप में पूजा जाता है।चारों दिशाओं के अलावा इनका पांचवा मुख आकाश की ओर है।मॉँ त्रिपुरा देवी के पाँच मुख तत्पुरुष,सद्योजात,वामदेव,अघोर,और ईशान भगवान भोलेनाथ के पाँचों रुपों के प्रतीक है।

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कहा जाता है,कि जगतगुरु शंकरार्चाय ने त्रिपुरा देवी की बड़े ही विधान से यहां पूजा उपासना की त्रिपुरसुन्दरी श्रीयन्त्र के रुप में आराधना चली आ रही है। शंकराचार्य जी ने सौन्दर्य लहरी में माँ त्रिपुर सुंदरी की माहिमाँ का बड़ा ही सुन्दर बखान किया है।भगवान शिव की नाभी से प्रकट कमल पर विराज मान भगवती त्रिपुर सुंदरी के प्र ति जो भी प्राणी अपने आराधना के श्रधा पुष्प अर्पित करता है।वह सब ओर से धन्य माना जाता है।इनके अनेक भक्त हुए जिनमें महर्षि दुर्वासा का नाम प्रमुखता के साथ आता है।

बचपन की याद को कुरेद कर बिताओ वक्त.

नाग भूमि बेरीनाग के भूभाग में स्थित नागों की परम आराध्या माता त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शनों के लिए दूर दराज क्षेत्रों से लोग यहां पहुंचते है।बाहरी क्षेत्रों में बसे लोग जब कभी कभार अपने ईष्ट देवों के पूजन हेतु घर आते है।तो वे माता त्रिपुरा सुन्दरी से भेंट करना कदापि नही भूलते है।रहस्य,रोमांच,आस्था की अद्भूत खान माँ त्रिपुरादेवी के प्रति स्थानीय लोगों में अपार श्रद्वा है।नेपाल से आये पुजारी यहां पूजा अर्चना का दायित्व संभाले हुए है

प्राचीन काल में शंकर जी ने एक सौ मन्वन्तर तक उन भगवती का तप किया था।इसी तरह ब्रह्मा व विष्णु ने भी शक्ति की तपस्या करके सर्वाधार आदि महान् पदवी को प्राप्त किया।मृत्यु पर विजय प्राप्त करनेवाले ,समस्त तत्वों को जाननें वाले महान् तपस्वी सर्वेश्वर शिव उन्हीं की तपस्या करके,उन्हें जानकर ही जगत का संहार करनें वाले हो सके।भगवान विष्णु माँ की भक्ति तथा सेवा के द्वारा महान् ऐश्वर्य से सम्पन,सर्वज्ञ,सर्वद्रष्टा,सर्वव्यापी,समस्त सम्पदा प्रदान करनें वाले ,सबके ईश्वर,श्रीसम्पन्नतथा सबके रक्षक हुए.
कुल मिलाकर माता त्रिपुरसुन्दरी की अतुलनीय महिमां का कोई पारावार नहीं है माता त्रिपुरा सुन्दरी को बाला-त्रिपुरा सुन्दरी त्रिपुर-भैरवी, वाक-त्रिपुरा माता महा-लक्ष्मी-त्रिपुरा, बाला-भैरवीदेवी,श्रीललिता देवी राजराजेश्वरीमैय्या, षोडशी माता आदि अनेकों नामों से भी पुकारा जाता है। भगवान विष्णु त्रिपुरा देवी की स्तुति करते हुए माता से प्रार्थना करते है।
हे त्रिपुरा देवी ! आपको नमस्कार है।हे। महाविद्ये! में आपके चरणों में नमन करता हूँ।हे सर्वार्थदात्री शिवे!आप ज्ञानरुपी प्रकाशसे मेरे हृदय को आलोक प्रदान कीजिये।

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