ढूंढते हुए घर पर अपनी कुछ अज़ीज़ चीजों को,अक्सर नज़र तो तुम्हारी भी उन सामानों पर पड़ जाया करती होगी ,
जो बचपन में सीने पर से लगा के रखते थे, तुम।
वो खिलौने, वो झुनझुना, वो माँ की साड़ी का एक टुकड़ा जिसके बगैर न कभी सोया करते थे ,जिसे हर वक़्त अपनी हतेली से दबा के रखते थे, तुम।
वो बर्तन जिसके अलावा किसी ओर में कुछ खाने से भी चिढते थे, तुम।
वो टोपी तुम्हारी जो पिता जी से रोकर मंगवाई थी, तुमने
उन जैसा दिखने को,
वो खिलौने जो बुखार आने पर, माँ ने दिलवाये थे सेहलाने को ।
वो सब याद तो आता होगा
तुमको ,
कभी बेवजह कुछ ढूँढने की कोशिश करना,
खुशी मिलती है दिल को।
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