सदियों से देवभूमि ऋषि मुनि और देवताओं की तपोस्थली रही है यही वजह है कि देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास है और 33 कोटि देवी देवता यहां निवास करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि पूरे विश्व में देव गुरु बृहस्पति के गिने चुने मन्दिरो में यहां एक अनोखा मंदिर है, आइए जानते हैं कि देवभूमि में गुरु बृहस्पति देव की इस अनोखे मंदिर की क्या महिमा है?
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उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक के सुदूरवर्ती देव गुरु पर्वत चोटी में मौजूद इस ऐतिहासिक मंदिर को सृष्टि के गिने-चुने बृहस्पति देव मंदिरों में से एक मंदिर कहा जाता है और मान्यता है कि इस जगह गुरु बृहस्पति ने घोर तप किया था और देव गुरु बृहस्पति की तपोस्थली होने के कारण यहां के आसपास के सभी गांव में बृहस्पति पूजा की परंपरा है. devguru brihaspati temple in nainital
देवगुरू वृहस्पति महाराज का यह एकमात्र मंदिर है जो समूचे हिमालयी भूभाग में परम पूज्यनीय है।इस मंदिर की महिमां के बारे में अनेकों दंतकथाएं प्रचलित है।कहा जाता है कि सत्युग में एक बार देवराज इन्द्र ब्रह्महत्या के पाप से घिर गये थे।इस पाप से व्यथित होकर पाप की मुक्ति के उद्देश्य से वे यहां के वियावान जंगलों की गुफाओं में छिपकर तपस्या करने लगे उनके द्वारा अचानक गुपचुप तरीके से स्वर्गछोड़ देने के कारण समूचा स्वर्ग व वहां के देवता अपने राजा को न पाकर त्राहिमाम हो गये।काफी ढूढ़ खोज के बाद भी जब देवराज इन्द्र का पता नही चला तो सभी देवगण निराश होकर अपने गुरु बृहस्पति महाराज की शरण में गये तथा उन्होनें देवगुरु इन्द्र को खोजनें का अनुरोध किया देवताओं की विनती पर देवगुरु ने इन्द्र की खोज आरम्भ की खोजते खोजते वे धरती लोक में पहुचें एक गुफा में उन्होनें देवराज इन्द्र को भयग्रस्त अवस्था में व्याकुल देखा देवगुरू ने इन्द्र की व्याकुलता दूर कर उन्हें अभयत्व प्रदान कर वापिस भेज दिया तथा इस स्थान के सौदर्य व पर्वतों की रमणीकता देखकर वे मन्त्रमुग्ध हो इस स्थान पर तपस्या में बैठ गये तभी से यह स्थान पृथ्वी पर देवगुरु धाम के नाम से जगत में प्रसिद्व हुआ. devguru brihaspati temple in nainital
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नागाधिराज हिमालय की रमणीक वादियों में ऊंचे पर्वत की चोटी पर इस देवालय में स्त्रियों का प्रवेश व उनकी पूजा अस्वीकार्य है।इस संदर्भ में यह दंतकथा लोक में काफी प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि पहले यहां पूजा का दायित्व स्त्री सभांलती थी वर्ष पूर्व एक बार पुजारिन पूजा की तैयारियां करके देवगुरू जी को भोग लगानें के उद्देश्य से दूध की खीर बना रही थी।इसी बीच मौसम ने करवट ली खराव मौसम के चलते पुजारीन की अधीरता बढ़ती गई आनन फानन जल्दबाजी में गर्म खीर पुजारिन ने देवगुरू को समर्पित कर दी खीर के पिण्डी में पड़ते ही पिण्डी फट गई कुपित देवगुरू ने उसी दिन से नाराज होकर स्त्रियों को पूजा के अधिकार के साथ साथ दर्शन के अधिकार से भी वंचित कर दिया तब से यहां स्त्रियों के लिए दर्शन व पूजन पर यहां प्रतिबन्ध है।तब से यहां पुजारी का दायित्व पुरुष वर्ग संभाले हुए है. devguru brihaspati temple in nainital
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जनपद नैनीताल के ओखलकाण्डा विकास खण्ड़ की ऊंची चोटी पर स्थित देवगुरु के इस दरवार की ऊंचाई लगभग आठ हजार फीट है।आसपास के गांवों में कोटली,करायल,देवली,पुटपुड़ी,तुषराड़ आदि है।जिनकी दूरी मंदिर से क्रमशः पाँचकिमी,सातकिमी,चार किमी,पाँच किमी,व छह किमी के लगभग हैं। इस स्थान तक पहुंचने के लिए धानाचूली से ओखलकाड़ा व करायल होते हुए लम्बा पैदल मार्ग तय करके यहां तक पहुचां जा सकता है।एक अन्य मार्ग ओखलकांड़ा से करायल देवली व देवली से पैदल चलकर देवगुरु के दर्शन किये जा सकते है।धानाचूली से पहाड़पानी होते हुए शहरफाटक को पार कर भीड़ापानी नाई कोटली होकर भी लोग यहां आते है।लेकिन यह रास्ता काफी लम्बा व जटिल है।
वियावान जगंलों की चोटी में स्थित देवगुरु के एक ओर माँ बाराही का ज्वलंत दरबार तो दूसरी ओर की पर्वत श्रृंखलाओं में अनेक धार्मिक धरोहरों की भरमार है।पौराणिक धार्मिक कथाओं को समेटे दयोथल की गुफा सहित अनेक गुफाएं शोधकर्त्ताओं के लिए गहन शोध का विषय है।चारों ओर घनघोर वनों में चीड़,देवदार,बांज, काफल सहित अनेक प्रजातियों के बृक्षों की भरमार है।वैसै तो यहां भक्तों का यदा कदा आना जाना लगा रहता है।लेकिन सावन व मंगसिर के महीनों में भक्तों की आवाजाही बढ़ जाती है।गांव वाले मिलकर समय समय पर सामूहिक पूजा का आयोजन भी करते रहते है। यहां सबसे गौरतलब बात यह है,कि भारतभूमि में देवगुरू के गिने चुने ही मंदिर है।लेकिन जहां वे पिण्ड़ी रुप में विराजमान है।वह एकमात्र मंदिर समूचे विश्व में यही माना गया है।जो ओखलकांडा ब्लॉक में काठगोदाम से लगभग 93 किमी की दूरी पर स्थित है।देवगुरू बृहस्पति महाराज एक मंदिर काशी विश्वनाथ जी के निकट भी है।और इनका एक पावन पौराणिक धाम उज्जैन में भी है।लेकिन पिण्डी के रुप में इनका पूजन समूची बसुधरा में यही होता है। देवगुरु बृहस्पति का पुराणों में अनेक स्थानों में सुन्दर उल्लेख मिलता है।इन्हें महातपस्वी व पराक्रमी ऋषि के रुप में भी जाना जाता है। धनुष बाण और सोने का परशु इनके हाथों की शोभा है जो भक्तों को अभयत्व प्रदान करती है।युद्व में विजय प्राप्त करने के लिए भी योद्वा इनकी स्तुति करते है। परोपकारी स्वभाव के होने के नाते इन्हें गृहपुरोहित भी कहा गया है, इनकी कृपा से ही यज्ञ का फल सफल होता है। devguru brihaspati temple in nainital
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देवताओं के गुरू के रुप में पूजित बृहस्पति देव महर्षि अंगिरा ऋषि की सुरूपा नाम की पत्नी से पैदा हुए थे। तारा और शुभा तारका इनकी तीन पत्नियाँ थीं। महाभारत के अनुसार बृहस्पति के संवर्त और उतथ्य नाम के दो भाई थे
बृहस्पति को देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। ये स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं। ये पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं तथा चार हाथों वाले हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं – भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। इन्होंने प्रभास तीर्थ में भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने उन्हें देवगुरु का पद प्राप्त करने का वरदान दिया था इनके प्रमुख मन्त्र इस प्रकार है। ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।
ॐ गुं गुरवे नम:।
ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।
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