बचपन की यादों को जोड़ता तोड़ता में अपने घर जाने के रास्ते को याद करने की कोशिश में जुटा था , मेरी भूली यादों में मेरे घर की ओर जाने वाला रास्ता एक पानी के धारे के पास से पैदल होकर जाता था , उसे चिणांग का गधेरा कहते थे, हम बालीघाट से तुपेड , रीमा(खड़िया की खान क्षेत्र) वाली सड़क पर मुड़ते हुए तकरीबन 7 किलोमीटर आगे बढे, कई सालों बाद आने के चलते मेरा मौसेरा भाई मनोज बोला कि कही हम आगे तो नही आ गये ? मुझे अपनी समझ और हालात पर बड़ा तरस आ रहा था , कि लंबे समय से पत्रकारिता में पहाड़ के पलायन और दुर्दशा की आवाज उठाने वाला , खुद कितना बड़ा खुदगर्ज हूं कि 30 साल की उम्र में अपने पैतृक घर का रास्ता तलाश रहा हूं. bageshwar
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जिस पलायन की बात कर में नेताओ को कोषता रहता हूं में भी उसका बड़ा जिम्मेदार हूं , उससे भी ज्यादा दुख मुझे तब हुआ जब में अपने घर जाने का रास्ता पूछने के लिए किसी ओर की खोजबीन करने लगा, थोड़ी दूर पर सरयू नदी के तट एक पाथर से बना पुराना घर (बड़े बड़े टाइल्स आकर के प्लेन पत्थरो से टीन शेड आकर के छत वाले घरों को पाथर से बना घर कहते है ) दिखा, हमे मटमैली टोपी पहने 65 साल के एक बुजुर्ग जो सीडी से नीचे की ओर जा रहे थे ,, को रोक कर पूछा ? कलाग? केवल इतना बोलने में उनका जबाब आया , ढेड़ किलोमीटर आगे जाकर दो तीन दुकाने ओर पानी का गधेरा (नहर) मिलेगी वही से कलाग गांव को रास्ता जाता है , अब मुझे विश्वास हुआ कि हा हम मंजिल से पीछे हैं, kapkot Travelogue

बाइक की पिछली सीट में अपने को मन ही मन कोशते हुवे में घर तक पैदल कैसे पहुचेंगे इस बारे में सोच रहा था, कि अगले मोड़ से हमे तीन चार दुकाने ओर चिणांग का गधेरा दिख गया, बचपन मे जहाँ से खड़ी चढ़ाई शुरू होती थी वहां 8 फिट की सीसी मार्ग देख कर मुझे खुशी हुई कि मेरे गॉव तक सड़क जाने लगी है अपनी बाइक से खड़ी चढ़ाई में 500 मीटर दूर जा कर मेरी खुशी दूर होगई, मेने देखा , कि प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत मनरेगा की 49 मजदूरों द्वारा पिछले 5 सालों में पहाड़ काट काट कर बनाई गई सड़क समाप्त हो गई थी , अब यहा से आगे का सफर पैदल तय करना था, सड़क जहाँ खत्म हुई थी वहां एक टीन शेड मकान के पीछे मेने अपनी बाइक खड़ी की हैंडिल लॉक लगा कर हेलमेट बाइक में रखने लगा तो मेरे मौसेरे भाई ने मुझे टोका की हेलमेट साथ ले चलते है कोई ले गया तो? मुझे उसकी बात से बड़ी हँसी आयी मेने कहा, जिस गॉव में पहुचना ही इतना दुर्लभ हो वहाँ कोई बिना बाइक के हेलमेट लेजाकर क्या करेगा, kalag Travelogue

मेरा भाई मुझसे बहस करने लगा ,, मेने कहा कि अगर लेजाने वाले ले जाएगा तो हेलमेट ही ले जाएगा, मेरी किस्मत नही , ये बोलते हुवे में आगे बढ़ गया , मेरा मौसेरा भाई बाइक की पिछली सीट में लगे बैग से 2 लीटर की चिल्ड पेप्सी की बोतल और दो लेज चिप्स की पाउच निकाल कर मेरे पीछे चल दिया,(हमे पता था कि मेरे घर पहुचने के लिए बहुत पैदल ओर खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, इसलिए प्यास बुझाने ओर रिफ्रेशमेंट के लिए हमने बगेश्वर बाजार से ही कोल्डड्रिंक खरीद ली थी )मेने घड़ी में समय देखा साढे 9 बजे थे अब हम पैदल अपने गॉव के रास्ते पर निकल चुके थे, आगे क्रमशः
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4 thoughts on “यात्रा वृत्तांत (द्वितीय भाग) उत्तराखंड के कपकोट विधानसभा के कलाग ग्रामसभा की दर्द भरी कहनी”
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आपका वृत्तान्त पढ़ते हुए लगा मानो कि बाइक पर ट्रिपलिंग मारे मैं भी बैठा हूँ।
मुझे भी आज खुद 20 बरस से ज्यादा हो गए अपने पहाड़ के पैतृक गाँव को देखे।
ज्यादा दुख इसलिए होता है क्योंकि मेरा गाँव आपकी तरह हल्द्वानी से 180 किलोमीटर दूर न होकर, हल्द्वानी से कुछ ही दूरी पर पदमपुरी में स्थित है और जहाँ तक पक्की सड़क भी जाती है।।
अब कोशिश यही रहेगी कि एक बार होकर आऊँ इस बार ।।
dhanywad
Ati sundar