कैसा आया ये संकट, कैसी हैं ये दशा
किसको कहूं मैं अपने मन की व्यथा
हर इंसान में एक ड़र हैं
सो न जाऊं कहीं मौत के आगोश में

हर इंसान में एक ड़र हैं
खो न दूं अपने किसी करीबी को
हर इंसान में एक ड़र हैं
छू न लू कहीं किसी मरीज को
कभी तो इस डर का अंत होगा
खौफनाक रात की सुहानी सुबह होगी
गुजारों कुछ दिन सुकून के
अपने परिवार और साथी संग
जल्दी खत्म ये डरावनी रात होगी
फिर से नवजीवन की शुरुआत होगी

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10 thoughts on “जल्दी खत्म ये डरावनी रात होगी, फिर से नवजीवन की शुरुआत होगी..”
Comments are closed.
bahut khub manju ji
Bahut achha.
बहुत अच्छी हैं आप की ये कविता
Nice
thx
मार्गदर्शन और हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद
Lovely , Excellent, Keep inspiring ??
thx
Very good poem
manobal badhane ke liye sukriy