नैनीताल- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देहरादून निवासी रीनू पॉल की जनहित याचिका पर शिवालिक एलीफैंट रिज़र्व को डी-नोटिफाई करने के राज्य वन्यजीव बोर्ड के निर्णय पर रोक लगा दी है । खण्डपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार के अलावा जैव विविध्ता बोर्ड और वन्यजीव बोर्ड से जवाब तलब किया है । मुख्य न्यायाधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति लोक पाल सिंह की खंडपीठ ने आज देहरादून निवासी पर्यावरणविद रेणु पॉल की याचिका पर सुनवाई करते हुए शिवालिक एलीफैंट रिज़र्व को डी-नोटिफाई करने के राज्य वन्यजीव बोर्ड के 14 नवम्बर 2020 के आदेश पर रोक लगा दी है । खंडपीठ ने राज्य सरकार, केंद्र सरकार, जैव विविध्ता बोर्ड और वन्यजीव बोर्ड को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है।
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गौरतलब है कि याचिका में रीनू पॉल द्वारा अवगत कराया गया था की देश में 1993 से प्रोजेक्ट एलीफैंट के तहत 11 एलीफैंट रिज़र्व नोटिफाई किये गए थे, जिनमे शिवालिक एलीफैंट रिज़र्व प्रमुख था। लगभग 6 जिलों में फैले इस एलीफैंट रिज़र्व को उत्तराखंड सरकार डी-नोटिफाई करने की तैयारी में थी। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में 14 नवम्बर 2020 को यह निर्णय लिया गया था जिसे 14 दिसंबर 2020 को सार्वजनिक किया गया। याचिकाकर्ता ने हाथियों पर कई किताबों का हवाला देते हुए बताया की, कैसे हाथी लॉन्ग डिस्टेंस(लंबी दूरी)चलने वाले जानवर है। इसलिए 6 जिलों में फैले रिज़र्व की उनके अस्तित्व को घोर आवश्यकता है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश एस.ए.बोबडे की तीन जजों की बेंच के 14 अक्टूबर 2020 के निर्णय का हवाला भी दिया गया था, जिसमे सर्वोच्च न्यायलय ने भी हाथियों के संरक्षण पर जोर देने की बात कही थी।
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