चले हैं दूर तक तन्हा, कोई आवाज़ तो दे दे..
जो मेरे गम समझ सके, वो हमदम वो हमराज़ तो दे दे…..
कि थक जाऊं कभी ज़िन्दगी की, उलझनों से मैं …
और ये दिल अजीब कशमकश में हो …
आये कोई करीब, और अपनेपन का अहसास तो दे दे…
यूँ ही जिये जा रहे हैं, बेमतलब से बेमक़सद से हम….
कि आये कोई जो हमे अपना कहे….
और ज़िन्दगी जीने का मक़सद – ऐ – खास तो दे !!
चंद्रा पांडेय (शिक्षका)


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2 thoughts on “मेरी ख्वाईश….”
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ये लेख सच में अच्छा है।अगर लेख को किनारे रख आप भाव को महसूस कर सकते हैं
Danywad