अपनी बूदो से फिर धरा को हरा श्रंगार करा दो
मेघ उमड़ रहे है नील गगन में काले काले…बरस पड़ो अब धरा पे रिम झिम
मेघ उमड़ रहे है नील गगन में काले काले…बरस पड़ो अब धरा पे रिम झिम
बरामदे ;कितने जरूरी है ?घर में ,बरामदे!जो बंद और तंग नही होते ,खुली दुनिया दिखाते
नैनीताल की तन्हाई,कोरोनो संग आई,इस खुशनुमा मौसम में ये कैसी मायूसी छाई,रोनक रहती थी यहां
अपने दर्द -जख्म और आसुओं कोसमेट लेती है अपने अन्तरस में उसी तरहज्यूं बाँज उत्तीस
अपनी गायकी के दम पर लगातार एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस देने वाले उत्तराखंड के
हल्द्वानी- लोकगायक व शिक्षक स्वर्गीय श्री पंचम मेवाड़ी जी की पहली पुण्यतिथि पर उनका लिखा
जय देवभूमिदेवों की तपोभूमि,उत्तराखण्ड जै जयकार।बरकत सबूकैं ऐजो,खुशहाली सबूकैं द्वार।चार धामों किं पावनता,जय गंगे जय
जय देव भूमि भौत महाना।हाँम करनूँ त्यौर गुणगाना।।पावन याँ छन चारों धामा।सारे जपि दुणिं सदा
खिल रहा है गुलबहारबेल लिपट रही है ठांगरे सेखिल रहे हैं फूल-फूल्यड़ पीले- हरेडलिया फांटौ