SHER SINGH SHERDA ANPADH

‘बखता त्यार बलाई ल्हयून’ सटीक बैठती है शेरदा ‘अनपढ़’ की ये रचनाएं

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च्यल मारनो बाप कै लात,

सास ज्वेड़ने ब्वारी हाथ,

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च्याल ब्वारियोक खिलखिलाट,

ओ बाज्यू बुढ़ बाडिनैक पड़रौ टिटाट,

उत्तराखंड के अल्मोड़ा के माल गांव में 13 अक्टूबर 1933 को बच्चे सिंह बिष्ट के घर जन्मे कुमाऊनी कविताओं के धरोहर के रूप में विख्यात कुमाऊनी कवि शेर सिंह बिष्ट (Kumaouni Poet Sher Singh Bisht) शेरदा ‘अनपढ़’ कुमाऊनी कविताओ के विकास में हमेशा याद रखे जाएंगे, भाषाई महत्वता को अनपढ़ होते हुए शेर दा ने जिस तरह अपनी कविताओं में पिरो कर रखा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. Famous Kumaouni Poet Sher Singh Bisht ‘Sher Da Anpad’

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शेर सिंह बिष्ट शेरदा ‘अनपढ़’ के प्रारंभिक जीवन में ही इनके पिता बच्चे सिंह का देहांत हो गया था पिता की बीमारी के इलाज के लिए घर और जमीन भी बेचनी पड़ी थी जिससे इनकी पारिवारिक आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई, पति के गुजर जाने के बाद इनकी मां लछिमा देवी लोगों के खेतों में मजदूरी कर अपने बच्चों का लालन-पालन करती थी. तत्कालीन समय में पहाड़ों में पढ़ाई लिखाई को इतना महत्व नहीं दिया जाता था जिस कारण शेरदा स्कूल पढ़ने नहीं गए. शेरदा ने कभी स्कूल का मुंह तो नहीं देखा लेकिन एक शिक्षिका ऐसी थी जिनके घर उन्होंने 5 साल की उम्र में पहली नौकरी की और उसी शिक्षिका ने उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी इसी तरह कुछ साल बीतने के बाद शेरदा फौज में भर्ती हुए।Famous Kumaouni Poet Sher Singh Bisht ‘Sher Da Anpad’

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शेरदा (Sher Singh Bisht ‘Sher Da Anpad’) जब फौज में भर्ती हुए तो उन्हें ड्राइवरी का काम मिला और फौज में जब उनका तबादला ग्वालियर हुआ तो वहां उन्हें टीवी बीमारी हो गई इसके इलाज के लिए उन्हें पुणे के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया और 2 साल तक वहां उपचार कराने के दौरान उन्होंने 1962 में चीन की लड़ाई में घायल हुए सिपाहियों से मिलने का मौका मिला और उन सिपाहियों की हालत और उनका दर्द देख पहली बार शेरदा ने उन हालातों को कविता में पिरोया, जिसके बाद बीमारी के कारण शेर दा अल्मोड़ा लौट आए, यहां चारू चंद्र पांडे और बृजेंद्र लाल शाह के सानिध्य में शेर दा को नया आयाम मिला, जिसके बाद लखनऊ, अल्मोड़ा, नजीबाबाद, रामपुर रेडियो स्टेशनों से शेरदा के गीत और कविताओं का प्रसारण होने लगा। Famous Kumaouni Poet Sher Singh Bisht ‘Sher Da Anpadh’

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रंग फीके पड़ने लगे हैं मेरे गांव में तब से, शहरों में उड़ने लगी तितलियां जब से ,

कुमाऊनी भाषा में अपनी कविताओं के लिए विश्व विख्यात शेर दा अनपढ़ ने 10 रचनाएं लिखी और 20 मई 2012 को शेर दा हम सब को छोड़कर अनंत में विलीन हो गए। Khabar pahad “खबर पहाड़” की ओर से कुमाऊनी भाषा को अपनी कविताओं के माध्यम से जन जन तक पहुंचाने वाले साहित्य के धनी शेर दा ‘अनपढ़’ को विनम्र श्रद्धांजलि.Famous Kumaouni Poet Sher Singh Bisht ‘Sher Da Anpadh’

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