himalay

फिर डराने लगा हिमालय! उत्तराखंड की 5 झीलें घोषित हुईं संवेदनशील, वैज्ञानिकों की टीम करेगी स्थलीय निरीक्षण

KhabarPahad-App
खबर शेयर करें -

देहरादून: हिमालयी राज्यों में लगातार बढ़ रहे ग्लेशियर झीलों के खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने बड़ी पहल की है। उत्तराखंड समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में वैज्ञानिकों की टीमें खतरनाक मानी जा रही ग्लेशियर झीलों का अध्ययन कर रही हैं। इसी कड़ी में 20 सितंबर को भारत सरकार और वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले की दो अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिए रवाना होगी।

गौरतलब है कि हाल ही में भारत सरकार ने हिमालयी राज्यों में मौजूद ग्लेशियर झीलों पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी जिसमें उत्तराखंड की पांच ग्लेशियर झीलों को “अति संवेदनशील” श्रेणी में रखा गया है। इन झीलों में चमोली और पिथौरागढ़ जिलों की झीलें प्रमुख हैं। चमोली जिले में स्थित वसुंधरा ग्लेशियर झील का अध्ययन पहले ही किया जा चुका है…जबकि अब पिथौरागढ़ की दो झीलों की बारी है।

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी : इंस्पिरेशन : दुबई से ब्रॉन्ज लेकर लौटी शिवांगी, पैरा बैडमिंटन में भारत की नई पहचान

अध्ययन के लिए रवाना होने वाली इस टीम में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए), जीआईएस विशेषज्ञ, आईटीबीपी और वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक शामिल होंगे। यह टीम झीलों की लंबाई, चौड़ाई, गहराई और पानी की वर्तमान स्थिति का आकलन करेगी। साथ ही यह भी विश्लेषण किया जाएगा कि यदि किसी आपात स्थिति में झील फटती है…तो कौन-कौन से निचले क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। अध्ययन के बाद झीलों के आसपास निगरानी के लिए सेंसर भी लगाए जाएंगे….ताकि भविष्य में खतरे का पूर्वानुमान लगाया जा सके।

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी :(बड़ी खबर) जांच में जुटी पुलिस, दीवार तोड़ कर ज्वेलरी शॉप में घुसे थे चोर

उत्तराखंड में फिलहाल 968 ग्लेशियर और 1,290 ग्लेशियर झीलें मौजूद हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में ग्लेशियर झीलों पर निगरानी बेहद जरूरी है। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा और 2021 में चमोली आपदा इसके जीवंत उदाहरण हैं…जब अचानक झील के फटने से भारी तबाही मची थी।

वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के अनुसार, जैसे-जैसे ग्लेशियर झीलें पुरानी होती जाती हैं, उनमें पानी का स्तर बढ़ता है। यह बढ़ता हुआ जलस्तर कभी-कभी इतना अधिक दबाव बना देता है कि झील की प्राकृतिक दीवार टूट जाती है…जिससे नीचे के इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यही कारण है कि भारत सरकार अब इन अति संवेदनशील झीलों पर विशेष नजर रख रही है और समय रहते जरूरी कदम उठा रही है।

यह भी पढ़ें 👉  Breaking News: रेलवे के किराए को लेकर बड़ी UPDATE

इस अध्ययन का उद्देश्य न केवल वर्तमान खतरे का मूल्यांकन करना है…बल्कि भविष्य में आपदा की स्थिति से निपटने की ठोस रणनीति भी तैयार करना है। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से पहले ही चमोली की झीलों के अध्ययन के बाद सेंसर लगाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और अब पिथौरागढ़ में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

Ad Ad
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें