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नैनीताल- 22 साल की लंबी लड़ाई के बाद मिला न्याय, ऐसे किया संघर्ष, हाईकोर्ट ने दिए ये निर्देश

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नैनीताल : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और हिल्ट्रोन कंपनी को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता का 22 साल से लंबित वी.आर.एस.राशी का भुगतान 3 माह के भीतर करे।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में हुई। मामले के अनुसार बागेश्वर निवासी बहादुर सिंह परिहार ने याचिका दायर कर कहा था कि याची 1987 में बागेश्वर में संचालित हिल्ट्रॉन और कुमांऊँ मंडल विकास निगम के एक संयुक्त उपक्रम कुमट्रोन में हेल्पर के पद पर 1991 में नियुक्त हुआ और 1993 में नियमित भी हो गया था । कम्पनी के बंद होने के बाद से कार्य कर रहे 11 कर्मचारियों को 1998 के कोई वेतन नही दिया गया।

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छह कर्मचारियों को अन्य विभागों में समायोजित करने का निर्णय सरकार द्वारा 5 नवम्बर 2016 को ले लिया गया, शेष 5 कर्मचारियों जिनमें से एक याचिकाकर्ता भी है, को न तो समायोजित किया गया और न ही ऐच्छिक सेवा निवृत्ति का लाभ दिया गया। उसी दौरान सरकार व कंपनी के उच्च अधिकारियों के बीच एक अहम बैठक में नवम्बर 2016 में सैद्धांतिक सहमति बनी की छटनीसुदा शेष 5 कर्मचारियों को 31 जून 2016 को कट ऑफ डेट मानते हुए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति दे दी जाय। परंतु याचिकाकर्ता द्वारा अनेकों बार निवेदन व प्रत्यावेदन देने के बावजूद भी उसे वी.आर.एस.का लाभ नही दिया गया ।

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अंत में मजबूर होकर जुलाई 2018 में हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी।जुलाई 2018 में उच्च न्यायालय ने सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश हुआ था । अक्टूबर 2018 में दाखिल जबाब में उच्च न्यायालय ने सरकार को शपथपत्र के माध्यम से बताया गया कि इस सम्बंध में वी.आर.एस.का लाभ देने की प्रक्रिया गतिमान है।आज सरकार की तरफ से जानकारी दी गई कि 30 सितम्बर 2020 को राज्यपाल महोदय द्वारा 5 कर्मचारियों को वी.आर.एस.का लाभ दिए जाने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। आज याचिकाकर्ता को 22 साल की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद न्याय मिला है।

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