इस ख़ालीपन को धूप का सेक लग जाने दो ,
इस बेकार सी बेकरारी को थोड़ा तो सुस्ताने दो ।
पता ना था लाचारी की गिरफ़्त में ऐसे आयेंगे,
ना घर से निकल ना खुली फिज़ाओं का लुत्फ़ ले पाएंगे।

साँसों से परहेज़ इस क़द्र करना पढ़ा ,
हर कदम कदम मुँह ढक कर चलना पड़ा ।
अब दूर से ही मिलते हैं ,हाथ नहीं मिलाते हैं।
और दिन में कई बार इन हाथों को नहलाते हैं ।
रिवाज दोस्ती के अब हमको बदलने होंगे ,
समय के मुताबिक़ एहतियात हमको बरतने होंगे।
जुदा रहकर भी एकजुट इस लड़ाई को लड़ना है,
हमें संयम रख इस महामारी से नहीं डरना हैं।
सभी को इसके प्रति जागरुक करना है और जगाना है ।
एक दूसरे का ध्यान रखते हुए करोना वाइरस को हराना है..

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