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उत्तराखंड,108 शक्तिपीठों में से एक है मां “पूर्णागिरि” माता, जानिए इतिहास..

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भारत नेपाल बॉर्डर क्षेत्र में मां पूर्णागिरि का मंदिर भारत ही नहीं अपितु विश्व पटल में अपनी पहचान रखता है, उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर में अन्नपूर्णा पहाड़ी में समुद्र तल से 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां पूर्णागिरि देवी का मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक है आज हम आपको महाकाली के इस पीठ के बारे में बताएंगे….purnagiri temple

फोटो साभार सोशल मीडिया

पौराणिक इतिहास के अनुसार कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री पार्वती (सती) ने अपने पति महादेव के अपमान के विरोध में दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में स्वयं कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। चंपावत से 15 और टनकपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां पूर्णागिरि के इस दरबार में हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं यही नहीं इस देवी दरबार की गणना भारत के 51 शक्तिपीठों में की जाती है शिव पुराण में रूद्र संहिता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था इसके उपरांत दक्ष प्रजापति द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को बुलाया गया था परंतु भगवान शिव शंकर को अपमानित करने की दृष्टि से आमंत्रित नहीं किया गया था भगवान शिव की पत्नी सती द्वारा अपने पति का अपमान होते देख सती ने यज्ञ में स्वयं कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, जिसके बाद भगवान शिव शंकर सती की जली हुई देवलेकर आसमान में विचरण करने लगे और तांडव नृत्य को देख उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अंग पृथक कर दिए बताया जाता है कि जहां जहां पर सती के अंग गिरे वहां वहां पर शांति पीठ स्थापित हो गए,purnagiri temple

फोटो साभार सोशल मीडिया

कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली , हिमाचल के नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, हिमाचल के ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, हिमाचल में ही चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,हिमाचल के नयना देवी मेंं नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहॉ पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।purnagiri temple

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फोटो साभार सोशल मीडिया

मां पूर्णागिरि देवी के दर्शन करने के लिए हर साल देशभर से 25 लाख से भी अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, विशेषकर नवरात्रि मार्च से अप्रैल महीने में सबसे ज्यादा श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं 3 महीने तक लगातार चलने वाले मां पूर्णागिरि दरबार के मेले में भी देशभर के भक्तों श्रद्धालुओं का तांता यहां देखने को मिलता है मां पूर्णागिरि के दरबार तक पहुंचने के लिए टनकपुर से ठुलीगाड़ तक गाड़ियां चलती है जहां से पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है जिस वीर हनुमान चट्टी आता है यहां से पुणे पर्वत का दक्षिण पश्चिमी हिस्सा देखने लगता है भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली काली नदी भी यहां से दिखती है।purnagiri temple champawat

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इस शक्तिपीठ की अनोखी कहानी है, यहां चमत्कार तो जैसे आम जीवन का हिस्सा बन गए हैं। आइए जानते हैं गिरि मंदिर के बारे में खास बातें…चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है। पूर्णागिरि पर्वत पर विराजमान देवी ने कई ऐसे चमत्कार भी किए जो लोगों को मां पूर्णागिरि की दैवीय शक्ति का अहसास कराते हैं। धाम की ओर रवाना होने से पहले देवी के द्वारपाल के रूप में भैरव मंदिर में बाबा भैरव नाथ की पूजा करने की परंपरा है। माना जाता है कि धाम के द्वार पर बाबा भैरवनाथ ही देवी के दर्शन के लिए जाने की अनुमति देते हैं। purnagiri temple tankpur

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दर्शन कर लौटते वक्त रास्ते में स्थापित महाकाली और झूठा मंदिर की पूजा की जाती है। झूठा मंदिर की गाथा देवी के चमत्कार से जुड़ी हुई है। एक बार की बात है एक सेठ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी मां से मन्नत मांगी थी। सेठ ने मन्नत पूरी होने पर सोने का मंदिर चढ़ाने का वचन दिया था। मां की कृपा से सेठ को एक पुत्र प्राप्त हुआ।

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पुत्र हो जाने के बाद सेठ को सोने का मंदिर चढ़ाने में लालच आ गया। उसने तांबे के मंदिर में सोने की पालिश चढ़ाकर लाया। मंदिर ले जा रहे मजदूरों ने विश्राम के लिए रास्ते में मंदिर जमीन में रखा तो बाद में मंदिर किसी से नहीं उठाया जा सका और सेठ को मंदिर वहीं पर छोड़कर वापस लौटना पड़ा।

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पुराणों के अनुसार, पूर्णागिरि धाम में टुन्ना, शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों ने आतंक मचा रखा था, इन राक्षसों की वजह से देवी-देवता भी आतंकित थे। तब मां पूर्णागिरि ने महाकाली का रूप धारण किया और टुन्ना राक्षस का वध कर दिया। इस मंदिर के पूर्व में पहले बलि दी जाती थी, लेकिन प्रशासन की पहल पर अब बलि प्रथा पूरी तरह से रोक दिया गया है। श्रद्धालु अब नारियल फोड़कर प्रतिकात्मक बलि की रस्म पूरी करते हैं।

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मां पूर्णागिरि धाम में देवी के चमत्कारिक गाथा से जुड़े तीन और छोटे-छोटे मंदिर भी हैं जिन पर लोगों की अटूट आस्था है। पूर्णागिरि पर्वत चोटी पर विराजमान देवी ने कई ऐसे चमत्कार भी किए जो लोगों को मां पूर्णागिरि की दैवीय शक्ति का अहसास कराते हैं। इस अहसास की वजह से भारत के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं। purnagiri temple

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