KAFAL

उत्तराखंड- ‘काफल’ पहाड़ का फल ही नही संस्कृति भी है पर क्यों पड़ी इस बार ‘काफल’ की चमक फीकी?

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नैनीताल– उत्तराखंड के जंगलों में और पहाड़ी ग्रामीण परिवेश में इन दिनों का फल की खुशबू अपने पूरे शबाब पर है पहाड़ में काफल KAFAL से पेड़ लकदक है लेकिन लॉकडाउन LOCKDOWN ने पहाड़ के इस चर्चित फल की चमक को फीका कर दिया है, सुनसान पड़े पहाड़ के रास्ते पर्यटकों की आवाजाही से वीरान पड़े टूरिस्ट स्पॉट काफल की फीकी पड़ी चमक की गवाही दे रहे हैं। “काफल” उत्तराखंड का फल ही नही बल्कि यहां की संस्कृति भी है, यहां इन दिनों काफल की बहार आई हुई है। कहने को यह एक जंगली फल है लेकिन अपने खट्टे-मीठे स्वाद के कारण यह पहाड़ों पर फलों के राजा के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन कभी बाजार में 250 से 300 रूपते प्रति किलो बिकने वाला काफल इस साल केवल गांव तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसकी वजह है लॉक डाउन, लॉक डाउन के साइड इफ़ेक्ट यही है की पर्यटन कारोबार चौपट हो गया, जो पर्यटक पहाड़ो की तरफ आते थे वे बड़े पैमाने पर काफल की खरीददारी करते थे जिससे स्थानीय ग्रामीणों की आर्थिकी का जरिया भी खुला रहता था लेकिन इस बार काफल का स्वाद मानो फ़ीका पड़ गया और काफल गांव के बीच तक सीमित होकर रह गया है। Kafal remained limited to the village

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KAFAL

काफल अक्सर उन जगहों में बहुत होता है जो जगहें बहुत ठंडी होती हैं, नैनीताल जिले में पहाड़पानी, मुक्तेश्वर में काफल का इस बार उत्पादन बहुत अच्छा है लेकिन काफल को बाजार नही 1मिल पा रही है, काफल को बहुत पहले से ही सरंक्षित करने की मांग उठ रही है क्योंकी यह औषधीय फल है, उत्तराखंड से बाहर इसकी बहुत डिमांड भी है, जंगल में पाए जाने वाले काफल में एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण मनुष्य के शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है और फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक होता है, जिसको डॉक्टर अक्सर प्रयोग करने की सलाह भी देते हैं, ग्रामीणों के मुताबिक अच्छी बात यह रही की इस बार जंगल आग से बच गये इसलिए काफल स्वादिष्ट है, लेकिन लॉक डाउन से स्थानीय फलों की बाजार ऒर पर्यटन दोनो पिट गए जिससे ग्रामीणों की आर्थिकी पर भी गहरा संकट आ खड़ा हुआ।

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