शब्दो का हिमनद अति हिमपात के कारण बहने को तैयार है और भावनाओं की झील में विस्फोट होने को उत्साहित है. आज हिमालय लिख रहा है अपने अनछुऐ पहलुओ को उजागर करने के लिऐ जो हिमनदो के इर्द र्गिद घूमते हुऐ दबे हुऐ हैं. हिरामणी, नामिक ग्लेशियर का पड़ोसी समुद्रतल से तकरीबन 2500 मी की ऊंचाई पर दानपुर (कपकोट,बागेश्वर ) परगने के बिचला दानपुर क्षेत्र का सबसे ऊंचाई पर स्थित ग्राम कीमू अपनी सुन्दरता के साथ ही परम्परा के लिऐ भी जाना जाता है. जिला मुख्यालय से तकरीबन 75 किमी सड़क दूरी पर एवं 4 किमी के दुलर्भ पैदल मार्ग को चुनौती देता यह गांव अपनी खुबसूरती और विरासत को सम्भाले हुऐ है. पधान को ओग देने की ब्रिटिश कालीन परम्परा नऐ प्रारूपो में आज भी जीवन्त हैं. नवम्बर से फरवरी तक प्रकृति का जब मन करता है इसे बर्फ की चादर ओढ़ा देती है. जेठ की गर्मी कीमू में शरमा के सिमट के ठहर जाती है दोपहर का घाम सुबह की गुनगुनी धूप सा मजा देता है. रामगंगा पार पड़ोस का नामिक गांव दूर से ही हाथ हिलाकर संदेेश प्रसारित कर शायद जन्म जन्म के साथ को प्रबलता प्रदान करता है. बुरांंश की सहज ही मनमोहित करने वाली लालिमा इसके सौन्दर्य को दुल्हन की तरह सुशोभित कर इसकी महिमा में चार चांद लगा देती है. bageshwar kapkot

मुस्कुराहटो के चन्द गीतो में कतिपय कष्टकारी पंक्तिया भी अपना हिस्सा दबाये हुऐ हैं. विकट संचार सेवा इस दूरस्थ क्षेत्र में आने वाले मुसाफिरो को खुबसूरती के लिहाफ में उड़ाकर अज्ञातवास का ताना मार देती है। प्रकृति में खुद को अनुकूलित करना भी यहां के जीवन को चट्टान की भांति अडिग बनाऐ हुऐ है. ठंडी को मात देता बखुला( भेड़ की ऊन का बना कोट) ब्रांडेड कपड़ो को पछाड़ देता है. देश काल और परिस्थितियां कभी सभी के लिऐ समान नही होती परन्तु सकारात्मक अभिवृत्ति यहां के जीवन को सुदृढ़ किये किये हुऐ है. ट्रैक आफ द ईयर -2018 लीती से नामिक मार्ग के मध्य में पड़ने वाले इस ग्राम के जनमानस एवं सौन्दर्य को कभी यदा -कदा बड़े और महंगे डी एस एल आर के दर्शन होते रहते है परन्तु शायद ही कोई क्लिक इस क्षेत्र को वृहद रूप में वैश्विक करने में सहायक सिद्ध हुआ है. Story of Village Kimu, Kapkot

शहरी चकाचैध से दूर न्यून तापमान में यहां की आबोहवा सांसो को मिन्ट सा मजा देती है. 4 जी के इस दौर में भी इस गांव के लिए 4 जी के ज का पर्याय जल, जंगल, जमीन और जन्तु हैं. नयनो को मंत्रमुग्ध कर देने वाले इसके प्राकृतिक सौन्दर्य से मन को सुकून सा मिलता है. हिमालय की गोद में बसे इस सुन्दर गांव में प्रकृति ने अनेक वरदान दिये है, बिना आर ओ का पानी बोतल बंद पानी की शुुुद्धता को ललकारता है. शायद यही कारण है यहां के निवासियों की स्फूर्ति का जो 4 किमी की खड़ी चढ़ाई को हंसते हुऐ काट जाते है। वस्तुतः कहीं न कहीं आते जाते पुरा काल में तपस्वी के आशीर्वाद का हीे परिणाम है. Story of Village Kimu, Kapkot

सांसो की गति को तीव्र करने वाली खड़ी चढ़ाई गांव के सफर को दुष्कर बना देती हैं. बावजूद इसके यहां की अमृतमयी जल धारा हौसलो के जोश को बरकरार रखता है. कई किमी ट्रेड मिल पर दौड़ने वालो की हिम्मत यहां के वांशिदो के कदमों के आगे डगमगा जाती है. कठिन जीवन को सुखमय बनाने वाले जनमानस की प्रेरणा के स्वतः ही पक्तियां नमन करती है.

हिमालय के पथ पर चल रहा बटोही है….
मंजिल बड़ी है दुरुह इस डगर की……
कहीं दूर आवाज गगन दे रहा है……….
झरता है अमृत यहां पर्वतो से…..
फिर भी कठिन है सफर जिन्दगी का………….

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2 thoughts on “हिमालय की कलम से ( ग्राम कीमू, कपकोट की कहानी )”
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आपने अपने भावों को अत्यन्त ही सुन्दर मोतियों की माला की तरह तराशने एवम् इस क्षेत्र की वास्तविक सुंदरता को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है कविवर , और हमारे पथप्रदर्शक महोदय
sukariya