नैनीताल – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पुलिसकर्मियों द्वारा पुलिस सेवा नियामावली 2018 को चुनौती देने वाली याचिका में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है । सत्येंद्र कुमार व अन्य ने याचिका दायर कर कहा है कि इस सेवा नियमावली के अनुसार पुलिस कॉन्स्टेबल आर्म्स फोर्स को पदोन्नति के अधिक मौके दिए हैं । जबकि सिविल व इंटलीजेंस को पदोन्नति के लिये कई चरणों से गुजरना होगा । याचिकाकर्ता पुलिसकर्मियों का कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा उप निरीक्षक से निरीक्षक व अन्य उच्च पदो पर अधिकारियों की पदोन्नति निश्चित समय पर केवल डी.पी.सी.द्वारा वरिष्ठता/ज्येष्ठता के आधार पर होती है। लेकिन पुलिस विभाग की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले, पुलिस के सिपाहियों को पदोन्नति हेतु उपरोक्त मापदण्ड न अपनाते हुये, कई अलग-अलग प्रकियाओं से गुजरना पडता है।
विभागीय परीक्षा देनी पड़ती है। पास होने के बाद 5 कि०मी० की दौड़ करनी पड़ती है। इन प्रक्रियो को पास करने के बाद कर्मियो के सेवा अभिलेखों के परीक्षण के बाद पदोन्नति होती है । इस प्रकार उच्च अधिकारियों द्वारा निचले स्तर के कर्मचारियों के साथ दोहरा मानक अपनाया जाता है । जिस कारण 25 से 30 वर्ष की संतोषजनक सेवा (सर्विस)करने के बाद भी सिपाहियो की पदोन्नति नही हो पाती है । अधिकांशतः पुलिसकर्मी सिपाही के पद पर भर्ती होते है और सिपाही के पद से ही बिना पदोन्नति के सेवानिवित्त हो जाते है, क्योकि निचले स्तर के कर्मचारियों की पदोन्नति के लिए कोई निश्चित समय अवधि निर्धारित नही की गई है । उच्च अधिकारियों द्वारा इस ओर कभी कोई ध्यान दिया गया है। नियमावली में समानता के अवसर का भी उल्लंघन है ।
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उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की खण्डपीठ ने मंगलवार को मामले में सुनवाई के बाद सरकार को जबाव दाखिल करने के निर्देश दिए हैं ।
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