HEERA SINGH RANA

‘बात पहाड़ की’ लोकगायक बीके सामंत की कलम से (भाग 3)

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पहाड़ व पहाड़ का गीत संगीत .

वो घर के आँगन की सींढ़ीयों पे बैठकर खिड़की में रखे रेडियो से हमारा नज़ीबाबाद रेडियो स्टेशन को सुनना मेरी वाली पीढ़ी को शायद अब भी याद होगा , रंगीली बिंदी घागरि कायी ( हीरा सिंह राणा जी ) , तु दिख्यांदी ( नरेंद्र सिंह नेगी जी ) कैली बज्या मुरुली ( गोपाल बाबु गोस्वामी जी ) कबूतरी देवी जी व अन्य भी बहुत सारे गायकों को सुनना हम सभी के लिये संगीत के किसी बहुत बड़े विद्दवांन से सिखने से भी बड़ा था , यह बात मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ , गायकी लेखकी व संगीत की जो विरासत हमें हमारे इन संगीत की धरोहरों से मिली उसे हम सभी ने कितना आगे बढ़ाया आज हमें इस पर विचार करने की बेहद ही ज़रूरत है ,

‘बात पहाड़ की’ लोकगायक बीके सामंत की कलम से (भाग 1)

वर्तमान में पहाड़ का गीत संगीत

कुछ गीतों के बोल तो ऐसे कि ‘ पूरे के पूरे ज्ञान की पोल खोल खोल देते हैं संगीत व गायकी का तो मत पूछिये , जिसे भी देखो अपने आप को जैसे स्वर कोकिला व स्वर कोकोला घोषित कराने का उन्मादी चोला पहने घूम रहा है, इस से भी बड़ी कोई उपाधि होती तो ये उसे भी नहीं छोड़ते , या युं कहें तो शायद ग़लत नहीं होगा कि ‘ एक से बढ़कर एक तानसेन ,
संगीत क्या है सब से पहले हमें इसे समझने की ज़रूरत है , बहरहाल छोड़िये इस इस बारे में फिर कभी विस्तार में ,

रैप , मैशप , ब्रो जैसे शब्द भला कहाँ हम पहाड़ियों पे चार चाँद लगाते हैं , आज संगीत को संगीत की तरह ही बनाये जाने व सुने जाने की बेहद शख़्त ज़रूरत आंन पड़ी है , लेखकी भला युँ हीं आ जाती तो कहाँ पड़ी थी उन हज़ारों कोरे कागजों को रद्दी होने की ,

हमें अपने आप पर बहुत मेहनत करने की ज़रूरत है और समाज को उम्मीद करनी चाहिये कि इस मेहनत का निचोड़ जब भी निकलेगा वह निचोड़ हमारे पहाड़ की संस्कृति को बेहतरी की तरफ़ लेकर जायेगा .

‘बात पहाड़ की’ लोकगायक बीके सामंत की कलम से (भाग 2)

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