सुबह घर से निकला. हाईवे पर देखा लंबी कतार देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ. कतार जहाँ खत्म होती थी, उससे दुगनी अंदर गली को एडजस्ट होकर लगी थी. सोचा, यहाँ पर क्या हो गया. इतनी लंबी लाइन. आगे बढ़ा तब जाकर समझ आया, ओह्हो! ये तो इकोनॉमी वॉरियर्स हैं. अंग्रेजी की दुकान थी. सब हसरत भरी नजरों से उसी ओर देख रहे थे. और आगे बढ़ा. तो देखा अपोजिट साइड में लाइन उससे भी लंबी निकली. ये महान आशावाद आपको कभी डूबने नहीं देगा. जो लास्ट में दिखाई दिया, देखकर लगा, तीन-चार घंटे से पहले इसका नंबर तो क्या ही आएगा, लेकिन उसके चेहरे पर गहरी आश्वस्ति का भाव था. वो जानता है उसका मकसद पूरा होगा. तीन-चार घंटे देर से ही सही, अरमान घुमड़-घुमड़कर पूरे होंगे. बीते चालीस दिन में उसने क्या-क्या सितम नहीं सहे. मानों जन्म-जन्म का प्यासा हो. ऊपर से रोज की किच किच. आधा दिन और सही. बस सारे कष्ट दूर होते हैं. गिले-शिकवे माफ. अगला- पिछला हिसाब बराबर. प्यार का सोता उमड़ने में कुछ देर और सही. और हाँ, सब निहायत अनुशासित अंदाज में दिखे. सोशल डिस्टेंस का कड़ाई से पालन करते हुए. जानते हैं, हीला हवाली की, तो ठेका बंद हो होने की नौबत आ जाएगी. एक्सपर्ट खामखाँ डराते हैं. इकोनामी को दिल खोलकर देने वाले भरे पड़े हैं.चाहत का बेसब्री से इंतजार किया, मानों अरमान पूरे होने से पहले झुरझूरी सी हो रही हो.


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