Tapkeshwar Mahadev Temple Dehradun

उत्तराखंड: यहाँ प्रसिद्ध महादेव जी के मंदिर से चांदी का नाग हुआ चोरी

खबर शेयर करें -

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के प्राचीन और ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर से भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान चांदी का नाग बीते रविवार को चोरी हो गया। चांदी का यह नाग लगभग 200 ग्राम वजनी था और वर्षों से शिवलिंग के श्रृंगार का एक पवित्र हिस्सा रहा है।

मंदिर प्रबंधन का कहना है कि यह चोरी सिर्फ एक भौतिक क्षति नहीं बल्कि धार्मिक परंपरा और आस्था पर गहरा आघात है। श्रद्धालुओं के लिए यह घटना गहरे दुख और आक्रोश का कारण बनी हुई है।

Ad

मंदिर से जुड़े श्री टपकेश्वर महादेव सेवादल (रजि.) के कार्यकारिणी सदस्य अनुभव अग्रवाल ने इस घटना की लिखित शिकायत सोमवार को कैंट थाना में दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि चोरी की खबर सामने आते ही सेवा दल ने मंदिर परिसर के सीसीटीवी कैमरों की मदद से चोर का पता लगाने की कोशिश की। जांच के दौरान एक संदिग्ध व्यक्ति को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, जिसकी पहचान और भूमिका की पुष्टि फिलहाल जांच का विषय है।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड:(बड़ी खबर) मुख्यमंत्री धामी ने फिर जीता युवाओं का दिल, धरनास्थल पर पहुंचकर मान ली सभी मांगें

कैंट थानाध्यक्ष केसी भट्ट ने बताया कि मामले में सोमवार को मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। जिस व्यक्ति को मंदिर समिति ने पकड़ा है वह संदिग्ध है और उससे पूछताछ जारी है। पुलिस ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष टीम गठित की है…जो आरोपी की गिरफ्तारी और चांदी के नाग की बरामदगी के प्रयास में लगी है। पुलिस का कहना है कि उनका लक्ष्य है कि भगवान शिव के मस्तक पर नाग को पुनः स्थापित किया जाए।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का छात्रों के आंदोलन पर भावपूर्ण संदेश

टपकेश्वर महादेव मंदिर: आस्था और इतिहास का संगम

देहरादून स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि यह हिंदू पौराणिक इतिहास का एक जीवंत प्रतीक भी है। माना जाता है कि यह मंदिर 6000 वर्ष से भी अधिक पुराना है और प्राकृतिक गुफा में स्थित है, जिसे द्रोण गुफा के नाम से जाना जाता है।

यह भी पढ़ें 👉  हल्द्वानी : लालकुआं नगर पंचायत को मिला अटल निर्मल पुरस्कार 2025, प्रदेश में हासिल किया पहला स्थान

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य ने इसी गुफा में तपस्या की थी। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब उनके पुत्र अश्वत्थामा दूध के लिए रो रहे थे तब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और गुफा की छत से दूध की धारा प्रवाहित की। यही धारा कालांतर में जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी शिवलिंग पर बूंद-बूंद टपकती रहती है…और यही कारण है कि इस स्थल को “टपकेश्वर” कहा जाता है।

Ad
अपने मोबाइल पर ताज़ा अपडेट पाने के लिए -

👉 व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वाइन करें

👉 फेसबुक पेज़ को लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे इस नंबर 7017926515 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें